देश में इस तबके की आबादी लगभग पांच लाख है लेकिन मतदान के लिए इनकी गणना सिर्फ करीब 35 हजार
जयपुर। किन्नरों (ट्रांसजेंडर) को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अलग पहचान के आदेश दिए जाने के बावजूद यह तबका लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित है।
पूरे देश में इस तबके की आबादी लगभग पांच लाख है, लेकिन मतदान के लिए इनकी गणना सिर्फ करीब 35 हजार ही है। प्रदेश में तो स्थिति और भी खराब है।
राजस्थान में हजारों ट्रांसजेंडर हैं, लेकिन मतदाता सूची में सिर्फ 349 का नाम है। गौरतलब है कि कुछ महीनों बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं।
2011 की जनगणना में पहली बार इस वर्ग को अलग से गिना गया। प्रदेश में ट्रांसजेंडर की आबादी 16 हजार 512 पाई गई। दोबारा 2013 में किए गए सर्वे में इसकी संख्या 22 हजार से अधिक आंकी गई, जो बालिग थे, जिनके नाम मतदाता सूची में जोड़े जा सकते थे। लेकिन, चुनाव आयोग के अनुसार जनवरी, 2018 में मात्र 349 ट्रांसजेंडर वोटर ही प्रदेश में पंजीकृत पाए गए हैं।
प्रदेश में सर्वाधिक ट्रांसजेंडर मतदाताओं की आबादी अलवर में 65 है । कई जिलों में तो इन्हें मतदाता सूची में जोड़ा ही नहीं गया है। ऐसा नहीं है कि ट्रांसजेंडर समाज द्वारा स्वीकार्य नहीं हैं। कई उदाहरण हैं, जिससे साबित होता है कि लोग इन्हें वोट देकर इनका प्रतिनिधित्व भी स्वीकारते हैं।
वर्ष 1998 में मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में सोहागपुर विधानसभा सीट से शबनम मौसी विधायक बनीं। साल 2004 में प्रदेश में चित्तौडगढ़ में निर्दलीय पार्षद बनी ममता बाई को लोगों ने इतना पसंद किया कि साल 2009 में उन्हें बेगूं का नगरपालिका का चेयरमैन बना दिया।
हक को नहीं किया जा रहा सुनिश्चित
राजस्थान किन्नर अखाड़े की अध्यक्ष बताती हैं कि प्रदेश में ट्रांसजेंडर की संख्या एक लाख से ज्यादा है। लेकिन मतदाता सूची में 349 का ही आंकड़ा है। इससे साफ होता है कि सूची बनाने वाले ट्रांसजेंडर के हक को सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं।