कुछ कहनी कुछ करनी!

2545
1954 की बात है। केरल में पतम थानु पिल्लई के नेतृत्व में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की सरकार बनी। वे मुख्यमंत्री बने। इस पार्टी के तीन प्रमुख नेता थे। आचार्य कृपलानी , जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया। तभी केरल में त्रावणकोर कोच्ची में पुलिस फायरिंग में चार व्यक्ति मारे गए। डॉ. लोहिया ने अपने मुख्यमंत्री से त्यागपत्र देने को कहा। लेकिन पिल्लई सहमत नहीं हुए। डॉ लोहिया का तर्क था कि जब किसी और पार्टी की सरकार में ऐसा होने पर हम इस्तीफा मांगते है तो हमे भी इस्तीफा देना चाहिए। कहने लगे कथनी करनी में अंतर नहीं होना चाहिए।
डॉ. लोहिया की दलील थी कि इस्तीफे के जरिये पार्टी  और जनता को व्यवहार और आचरण में प्रशिक्षित करना है। इस तरह का इस्तीफा अन्य पार्टियों को अपने व्यवहार में प्रभावित करेगा। इस पर पार्टी के भीतर भारी विवाद खड़ा हो गया। इसी विवाद में पार्टी टूटी और  सरकार भी गई। बाद में डॉ लोहिया ने एक जनसभा में कहा कि कोई भी सरकार, जो अपनी पुलिस की राइफल पर निर्भर करती है, जनता का भला नहीं कर सकती।
अब सभी दल अपनी सुविधा से सिद्धांतों की व्याख्या कर लेते हैं। उनकी सैद्धांतिक व्याख्या इस पर निर्भर करती है उस मौके पर वे किस तरफ खड़े है–सत्ता पक्ष मे या विपक्ष में।
सरकार किसी की भी हो। लेकिन जब जनादेश खंडित हो ‘राजभवन ‘वाला ‘ ही तय करता है कि कौन नसीब ‘वाला’ है।
–नारायण बारेठ

अपना उत्तर दर्ज करें

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.