‘भंवर’ में फंसी भाजपा, नहीं मिल रहा एक नाम

हाइकमान ने प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए मांगा एक नाम

बीकानेर। एक महीने से खाली पड़ी भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की सीट अब एक नाम के ‘भंवर’ में फंस गई है। पार्टी आलाकमान ने प्रदेशाध्यक्ष के लिए एक नाम सुझाने को कहा है, लेकिन यहां चुनावी व जातिगत सभी समीकरण लगाने पर भी गणित सुलझ नहीं पा रही है।  ऐसे में फिर पार्टी नेता ‘ये नहीं तो वो’ के विकल्प खोजने में लगे हैं।

पार्टी के शीर्ष नेता पिछले करीब 15 दिनों से नए अध्यक्ष के नाम पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। हाल ही में, भाजपा प्रदेश कोर कमेटी की बैठक में भी इस मुद्दे पर औपचारिक-अनौपचारिक रूप से मंथन किया गया, लेकिन पार्टी नेताओं को एक ऐसा नाम मिल ही नहीं रहा जो सभी समीकरणों व चुनावी गणित पर फिट हो। कोर कमेटी की बैठक में खुद मुख्यमंत्री व अन्य दिग्गज नेता तय नहीं कर पा रहे हैं कि किसका नाम सुझाएं। दूसरी ओर पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अपनी पसन्द नकारे जाने के बाद एक नाम मांग कर गेंद प्रदेश के पाले में डाल दी है।

प्रदेश कोर कमेटी की पहले हुई बैठक भी बेनतीजा रही थी, इस बार भी कई नामों पर विचार हुआ लेकिन कोई न कोई पेच फंसा कि फैसला रुक जाता है। वजह साफ है कि कुछ महीनों बाद ही प्रदेश में चुनाव होने है और पार्टी किसी प्रकार का रिस्क नहीं लेना चाहती है।

कोई नाराज न हो जाए…..

राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि नाम तो प्रदेशाध्यक्ष के लिए कई सामने आए हैं लेकिन उस पर मुहर लगाने से किसी नेता या जातिवर्ग के भड़कने का डर सता रहा है।

पार्टी आलाकमान ने गजेन्द्रसिंह शेखावत का नाम आगे किया था, जिसका विरोध हो गया। नाम केन्द्रीय राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल का भी आया था, जिससे अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों की नाराजगी को चुनाव में साधा जा सके, लेकिन दो अप्रेल को भारत बंद के बाद सवर्णों की नाराजगी बढ़ने से पार्टी के शीर्षस्थ नेता रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है।

फिर भाजपा में आकर राज्यसभा पहुंचे किरोड़ीलाल मीणा का नाम भी उभरा, लेकिन उनकी स्वीकार्यता और गुर्जर फैक्टर आड़े आ गया। मंत्री अरुण चतुर्वेदी का नाम भी सामने आया, लेकिन उन्हें इस पद पर आने के लिए मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा। मंत्रीमण्डल में उनकी जगह लेने वाला कोई और प्रभावी ब्राह्मण नेता नजर नहीं आ रहा है। एक राय इस्तीफा दे चुके अशोक परनामी को ही वापस प्रदेशाध्यक्ष बनाने की आई, लेकिन यह सौदा भी पार्टी को महंगा पड़ने की आशंका है।

वैकल्पिक नाम भेजने की कवायद

राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक एक नाम पर सहमति नहीं बन पाने की स्थिति में पार्टी वैकल्पिक नामों का प्रस्ताव आलाकमान को भेजे जाने पर विचार कर रही है। इससे पहले वैकल्पिक नामों वाले नेताओं और उनके प्रमुख समर्थकों से सहमति लेने की कवायद जारी है, ताकि विरोध कम हो सके। पार्टी नेताओं का मानना है कि प्रदेशाध्यक्ष चयन में पहले से ही बहुत देरी हो चुकी है, अब एक दिन की देरी भी पार्टी को भारी पड़ सकती है। केन्द्रीय नेतृत्व की ओर से सामने आए नाम को ठुकराए जाने के बाद वैसे भी पार्टी के भीतर रिश्ते तनावपूर्ण हो चुके बताए जा रहे हैं। ऐसे में किसी बीच के रास्ते के लिए संघ की ओर भी केन्द्र और राज्य के नेता टकटकी लगा रहे हैं। फिलहाल पार्टी के लिए स्थिति काफी असमंजस की बनी हुई है।

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