पवन भोजक
बीकानेर की सियासत में इन दिनों यूआईटी अध्यक्ष महावीर रांका के खासे चर्चे हैं तो दूसरी तरफ चर्चित मेयर नारायण चौपड़ा भी कम नहीं है। वजह चाहे जो भी हो। दोनों नेताओं की तमाम सफाई के बाद भी बीकानेर में ये साफ हो चला है कि दोनों में अनबन है।
यूआईटी अध्यक्ष महावीर रांका और मेयर नारायण चौपड़ा दोनों का ही सियासी उदय बहुत पुराना नहीं है। दोनों ही बीकानेर के उपक्षेत्र गंगाशहर से आते हैं, दोनों की जातियां समान है, दोनों ही विधायकी के सपने पाले हुए हंै आदि-आदि समानताएं हैं। जिसकी लिस्ट लंबी भी की जा सकती है।
कहते हैं की निगम चुनावों के दौरान यूआईटी अध्यक्ष ने बाड़ाबंदी तक में मेयर का खुलकर साथ दिया था। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों के भीतर एक रेस शुरू हो गई। सियासी जानकार मानते हैं कि यूआईटी अध्यक्ष की अतिसक्रियता और टिकट की दावेदारी से प्रतिस्पर्धा तो स्वाभाविक थी लेकिन भाजपा के ही कुछ मौकापरस्त राजनेताओं ने इस प्रतिस्पर्धा में आग में घी डालने का काम किया। हालांकि मेयर की कार्यशैली को लेकर भी विवाद कम नहीं हुए। आयुक्तों से लेकर पार्षदों से टकराव जगजाहिर रहा है। ऐसे में मेयर से नाराज लोगों ने यूआईटी अध्यक्ष का दामन थाम लिया। आयुक्त राकेश जायसवाल जिनकी मेयर शिकायत करते नहीं थकते थे यकायक यूआईटी सचिव बनकर कैसे विकास पुरुष बन गए तो उपायुक्त डॉ राष्ट्रदीप भी निगम से यूआईटी पहुँच गए। सचिव और आयुक्तों के बीच जिले के मुखिया के यहाँ मेयर ने भागदौड़ शुरू कर पिछले मुखिया से बेहतर तालमेल भी बना लिया था, लेकिन इन तमाम चीजों के बाद निगम के हालात जस-के-तस रहे। सियासी टकराव से नौकरशाहों की पसंद ना पसंद भी बदली। बात यहाँ तक पहुँच गई कि दोनों नेताओं के यहां एक-दूसरे के कान भरने वाले नेता देखे जाने लगे। मेयर को केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल और भाजपा जिला संगठन का पूरा साथ मिला। भले ही जनता में मेयर अपनी पैठ नहीं जमा पाए लेकिन विधायक सहित कुछ नेताओं को साधने में कामयाब हो गए।
इधर यूआईटी अध्यक्ष को पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने बैकअप दिया। आपसी खींचतान यहाँ तक पहुँच गई कि भाजपा के कार्यक्रम में जब भीड़ नहीं आई तो सॉफ्ट टारगेट महावीर रांका के हेलमेट वितरण कार्यक्रम को बतला कर पल्ला झाड़ लिया गया। सीएम ने भी यूआईटी अध्यक्ष को तनिक चेताया लेकिन कार्यक्रम के बाद सीएम हैंडल से हुए ट्वीट्स ने रांका कैम्प को फिर ऊर्जा दे दी। जूनागढ़ के सामने सूरसागर के मसले को लेकर रांका ने अतिसक्रियता दिखाई जिसके चलते सोशल मीडिया में खिंचाई तो हुई लेकिन सूरसागर की एकबारगी दशा सुधारने में कामयाबी मिल गई।
अब गौरव यात्रा से पहले बूथ सम्मेलन में मेयर को लेकर हंगामा हुआ है। हालांकि मेयर की खासियत कहिएगा की मेयर विकट-से-विकट स्थिति में बेचैनी से बचे रहते हैं, लेकिन इस अंदरखाने चल रही प्रतिस्पर्धा का फर्क बीकानेर शहर की सेहत पर पड़ रहा है। दोनों ही नेता भले आपस में चुप्पी साधे रहे लेकिन समर्थकों में होड़ साफ नजर आ रही है। रही-सही कसर उपमेयर अशोक आचार्य खुल्लमखुल्ला गाहे-बगाहे विरोध जता कर पूरा कर रहे हंै।
हालांकि ये सच है तमाम प्रतिकूलताओं के बाद भी यूआईटी के विकास कार्य शहर में नजर आने लगे हैं लेकिन निगम को लेकर अभी छवि बदली नहीं है। मेयर ने परिवार ने आपातकाल का दंश झेला है और मेयर पर संघ का वरदहस्त है वहीं महावीर रांका अपने मैनेजमेंट से कहिए या संघर्ष उसी से यहाँ तक पहुँचे हैं। सीएम खेमे में रांका ने स्थानीय नेताओं के विरोध बाद भी सीएम खेमे में अपनी जगह बनाई है। लेकिन अत्यधिक गति के चलते कुछ साथ खड़े रहने वाले नेता इन दिनों रांका से दूर है लेकिन दिलचस्प बात ये है कि करीब दर्जनभर पार्षद रांका के गुणगान करते नहीं थकते।
हालांकि यूआईटी अध्यक्ष पर प्रचार पॉलिटिक्स का आरोप विरोधी जड़ते रहे। रांका के समर्थक इतना ही कहते हंै कि काम करेंगे तो ही प्रचार होगा बिना काम किसका प्रचार। हालांकि दोनों नेता किसी भी तरह की टिप्पणी से बचते नजर आए। वहीं मेयर को लेकर कोई करप्शन का आरोप तो टिकता दिखता लेकिन उनके ही निगम के अधिकारी मेयर की हर बात में बाल-की-खाल निकालने की आदत के चलते काम नहीं होने की बात दबे स्वर में करते दिखते हैं।
दोनों नेताओं के बीच चल रही इस प्रतिस्पर्धा ने बैठे बैठाए भाजपा को एक और गुटबाजी में बांट दिया है देखना दिलचस्प होगा गौरव यात्रा के दौरान पलड़ा किस की ओर झुका रहता है।