कहते हैं राजनीति संभावनाओं की कला है । ऐसी सम्भावनाओं को कन्हैया लाल झंवर ना केवल तलाशते रहे है अपितु समय आने पर अपने आपको सिद्ध भी किया है। एक नेेता जिसने के कभी देेवी सिंह भाटी के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन अब उसने दो चुनावों से वही भाटी उन के सबसे बड़े पैरोकार है अब यह तो कन्हैया लाल झंवर ही बता सकते हैं कि आखिर कैसे वह बड़े नेताओं को शीशे में उतार लेते हैं ।
2008 में कांग्रेस के सामने निर्दलीय चुनाव लड़ा और कांग्रेस के दिग्गज नेता रामेश्वर डूडी को ना केवल हराया। जैसे तैसे अशोक गहलोत की गुड बुक में आकर संसदीय सचिव बन गए । अगला चुनाव हारा तो नोखा नगरपालिका से बेटे को भारी बहुमत के साथ चेयरमैन बना दिया। लाला स्टाइल में पॉलिटिक्स करने वाले के एल झंवर एक बार फिर कांग्रेस की आंधी को तो भांप रहे है लेकिन टिकट की टिकटिक के बीच ही भाजपा से टिकट तलाशनी शुरू कर दी। शाह और राजे की रणनीति में फिट भी बैठ रहे। अब चुनौती ये थी कि विश्नोई समाज के नेता बिहारी विश्नोई को साधा जाए। हालांकि जसवंत विश्नोई सहित कुछ कम जमीनी पर सेटिंग पॉलिटिक्स के मास्टर विश्नोई समाज के एक युवा नेता भी सक्रिय है । लेकिन नोखा में बिहारी विश्नोई भाजपा से भले ही एक बार बागी होकर चुनाव लड़े हो लेकिन सच ये कि नोखा में उन्होंने भाजपा के लिए मेहनत की। ऐनवक्त पर बिहारी विश्नोई को साधने का जतन सिद्दत से शुरू हो गया है। जिस बड़े भाजपा नेता के सहारे ये मंडली थी उसी नेता को ये काम सौंपा गया है कि बिहारी विश्नोई को समझाया जाए। पार्टी जीतेगी तो उन्हें महत्वपूर्ण पद और कद मिलेगा।
ऐसे में अब पार्टी से बाहर रिश्तों के लिए जाने जाने वाले अर्जुन मेघवाल सक्रिय हुए है कि इस एंट्री पर ब्रेक लगे। उन्होंने कहा भी बताया कि झंवर टिकट लेने को तैयार नहीं है लेकिन उन्हें टोकने की बात भी सूत्रों के हवाले से है । हालांकि के एल झंवर को गजेन्द्र सिंह शेखावत और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी विनिंग मैटेरियल के तौर पर देख रही है ।
कुल मिलाकर झंवर भाजपा का झंडा कब उठायेंगे या उठाएंगे भी की नही लेकिन झंवर के इस एक्शन ने दोनों ही दलों के नेताओ में बेचैनी बढाई है। हालांकि कहा जा रहा है कि महज औपचारिक ऐलान ही शेष है लेकिन बात वही कि राजनीति सम्भावनाओं की कला है ऐसे में अब भी झंवर को भंवर में रखने के प्रयास भी होंगे
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