संगठन को नया रूप देने की कवायद, सियासी गलियारों में चर्चाएं शुरू
बीकानेर। कांग्रेस में संगठन को नया रूप देने की कवायद की जाने लगी है। जिसकी वजह से सियासी गलियारों में इन दिनों काफी तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। लोगों में यह भी चर्चा है कि कांग्रेस की यह ‘हॉट लाइन’ कहीं घर के सारे फ्यूज ही न उड़ा दे।
जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव अशोक गहलोत संगठन को नया रूप देने की कवायद शुरू कर चुके हैं। उन्होंने प्रदेशों की कार्यकारिणी के काम का बंटवारा और प्रभावी मॉनीटरिंग के लिए संगठन महासचिव बनाने का फैसला किया है।
संगठन महासचिव सीधे एआईसीसी के संगठन महासचिव के सम्पर्क में रहेंगे। गहलोत के इस फॉर्मूले को जानने मात्र से ही सियासी गलियारों में कसमसाहट शुरू हो गई है।
भाजपा के संगठन महामंत्री की तर्ज पर कांग्रेस में बनाए जा रहे इन पदों पर गहलोत ने मुहर भी लगा दी है। साथ ही ये भी साफ कर दिया है कि इसके साथ ही कुछ और पद भी प्रदेश कार्यकारिणी में बनाए जाएंगे।
इन पदों को सृजित करने के पीछे गहलोत ने मुख्य कारण प्रदेश अध्यक्षों की व्यस्तता के साथ काम का बंटवारा बताया है, लेकिन ये बात सियासतदारों के गले नहीं उतर रही है।
सियासी हलकों में चर्चा है कि जब प्रदेश का संगठन महासचिव सीधे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के सम्पर्क में रहेगा तो ये ‘हॉटलाइन’ की तरह काम करेगी। ऐसे में प्रदेश कार्यकारिणी की शक्तियों के साथ ही उसके काम भी प्रभावित होंगे।
राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक गहलोत संगठन महासचिव के जरिए एक ऐसी चेन तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जिसके जरिए पार्टी में सबसे नीचे की इकाई पर भी सीधे तौर पर पकड़ बनेगी। हालांकि इस पद को लेकर गहलोत का तर्क है कि कई बार सूचनाएं समय पर नहीं पहुंचती है।
ऐसे में संगठन महासचिव के जरिए सूचनाएं समय पर पहुंच सकेंगी और काम का सरलीकरण भी हो सकेगा लेकिन राजनीति के जानकारों का कहना है कि प्रदेश स्तर पर तैनात होने वाला संगठन महासचिव जिला तथा ब्लॉक स्तर पर बनी कार्यकारिणी से रिपोर्ट लेकर उसे राष्ट्रीय महासचिव यानि गहलोत को देने का काम करेगा।
वहीं प्रदेश संगठन मुख्यालय का प्रभार भी देखेगा। जबकि अभी तक एक मुख्यालय प्रभारी महासचिव बनाया जाता है, जो केवल पीसीसी अध्यक्ष को रिपोर्ट करता था। लेकिन नई व्यवस्था के साथ ही सियासी रूप से काफी बदलाव होने की संभावना पैदा हो गई है।
कांग्रेस के भीतर के ढांचे में फेरबदल को लेकर की जा रही इस तैयारी के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि इसके जरिए एक पावरफुल चेन भी खड़ी हो जाएगी, जिसका पार्टी को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो सकता है, क्योंकि सीधे राष्ट्रीय महासचिव के सम्पर्क में होने की वजह से प्रदेश में तैनात संगठन महासचिव पीसीसी को ज्यादा महत्व नहीं देगा।
ऐसे में पार्टी के भीतर पहले से कार्य कर रहे प्रदेश के ढांचे के पास ज्यादा कुछ बचेगा नहीं। यही वजह है कि प्रदेश संगठन महामंत्री के पद की बात के बारे में सूचना मिलने के साथ ही सियासी गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं तेज हो गई हैं।