बीकानेर। रेलवे, इंश्योरेंस नियोजक व कर्मचारी दण्ड प्रक्रिया संहिता-1973 की धारा-197 के प्रावधानों की सुरक्षा के तहत नहीं आते हैं अर्थात उन्हें लोकसेवक की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
ये आदेश न्यायालय अपर सेशन न्यायाधीश घनश्याम शर्मा ने एसएम मिश्रा ‘आलोक’ सीनियर डिवीजनल मैनेजर, भारतीय जीवन बीमा निगम, जेएनवी कॉलोनी, बीकानेर बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान व प्रवर्तन अधिकारी (केन्द्रीय), केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, सागर रोड के पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई करते हुए दिए हैं।
गैरनिगरानीकर्ता प्रवर्तन अधिकारी जयदीप यादव के अधिवक्ता अशोक भाटी ने बताया कि 27 जुलाई, 2016 को गैरनिगरानीकर्ता की ओर से अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-1 में समान वेतन अधिनियम-1976 की धारा-10(1) के अन्तर्गत इस्तगासा इस आशय से पेश किया गया था कि परिवादी जयदीप यादव को भारत सरकार श्रम मंत्रालय, नई दिल्ली की अधिसूचना संख्या एस.ओ. 295(ई) दिनांक-20.04.89 के तहत संबंधित अधिनियम एवं उसके अधीन बनाए गए नियमों के लिए राजस्थान राज्य के लिए नियुक्त किया गया है।
निगरानीकर्ता द्वारा भारतीय जीवन बीमा निगम, मण्डल कार्यालय, बीकानेर स्थित जीवन बीमा का कार्य करवाया जा रहा था, अत: अभियुक्त एसएम मिश्रा ‘आलोक’ समान पारिश्रमिक अधिनियम-1976 की धारा-2(सी) के अन्तर्गत नियोजक है।
दिनांक 08.12.2015 को जयदीप यादव, श्रम प्रवर्तन अधिकारी (केन्द्रीय), बीकानेर ने अभियुक्त द्वारा संपादित करवाए जा रहे कार्य का निरीक्षण किया तो कार्य में काफी अनियमितताएं पाई गई। उक्त अनियमितताओं के बारे में अभियुक्त को दस्ती द्वारा सुपुर्द करायी गई।
अनियमितताओं के बारे में अभियुक्त का अनुपालन प्रतिवेदन कार्यालय में प्राप्त हुआ था। जिसके आधार पर उन्हें सत्यापन का अवसर दिया गया लेकिन सत्यापन के समय फार्म डी रजिस्टर की पुन: अनियमितता पायी गई।
जिस पर अभियोग पत्र न्यायालय में पेश कर अभियुक्त के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई करने का निवेदन किया गया था। जिस पर न्यायालय ने प्रसंज्ञान लिया था। जिससे व्यथित होकर एसएम मिश्रा ‘आलोक’ ने न्यायालय अपर सेशन न्यायाधीश संख्या-3 बीकानेर में पुनरीक्षण याचिका 90/2017 प्रस्तुत की।
पुनरीक्षण याचिका के निर्णय में गैरनिगरानीकर्ता अर्थात श्रम प्रवर्तन अधिकारी (केन्द्रीय) की ओर से भारत सरकार के स्थाई अधिवक्ता अशोक भाटी ने अपने तर्कों के समर्थन में रूलिंग पेश की।
न्यायिक विनिश्चय में इंश्योरेंस कम्पनी के अधिकारी व नियोजक सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किए जाने के कारण उन्हें दण्ड प्रक्रिया संहिता-1973 की धारा-197 की सुरक्षा नहीं होने का प्रमाण भी उन्होंने प्रस्तुत किया।
न्यायालय ने प्राथी/याचिकाकर्ता एसएम मिश्रा की याचिका खारिज करते हुए अधिनस्थ न्यायालय के द्वारा पारित आरोपित ओदश को सुस्पष्ट किया।