ओबीसी जातियों पर कांग्रेस का फोकस, 66 साल बाद याद आई

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मानवेन्द्र

वंचित जातियों में सेन, चारण, छींपा, दर्जी और सोनी शामिल, एक दर्जन से ज्यादा जातियों के लोगों को 1952 से आज तक नहीं मिला लोकसभा और विधानसभा चु्रनाव का टिकट।

बीकानेर। प्रदेश में विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस में प्रत्याशी चयन को लेकर दिल्ली में कवायद तेज हो गई है। स्क्रीनिंग कमेटी सहित पार्टी के आला नेता दावेदारों पर मंथन कर रहे हैं।

दावेदारों के जातिगत आंकड़ों पर भी ध्यान दिया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर पार्टी के थिंक टैंक का फोकस उन जातियों पर है जिन्हें अभी तक प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। उन जातियों को लेकर भी पार्टी के भीतर मंथन चल रहा है।

ओबीसी में एक दर्जन से ज्यादा जातियां ऐसी हैं, जिन्हें 1952 से लेकर आज तक कांग्रेस ने विधानसभा और लोकसभा में टिकट नहीं दिया है। इसके चलते इन जातियों का रूझान ज्यादा भाजपा की तरफ होता है। भाजपा के इसी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए पार्टी इस बार इन जातियों को प्रतिनिधित्व देने पर विचार कर रही है। वैसे राजस्थान में मूल ओबीसी के 54 प्रतिशत मतदाता हैं, जो किसी भी पार्टी की चुनावी वैतरणी को पार लगा सकते हैं।

उचित प्रतिनिधित्व की उठी मांग

मूल ओबीसी की जातियों को विधानसभा व लोकसभा चुनाव में उचित प्रतिनिधित्व देने की बात पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी कई बार दोहरा चुके हैं। ओबीसी जातियों को लेकर जून में पार्टी का महाधिवेशन भी दिल्ली में आयोजित हुआ था।

ओबीसी मतदाताओं में सेंध लगाने और उन्हें लुभाने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने ओबीसी विभाग और नेताओं को आगे किया हुआ है। यही वजह है कि पिछले दो महीनों में प्रदेश भर में ओबीसी जातियों वाले क्षेत्रों में ओबीसी के सम्मेलन पार्टी करवा चुकी है।

शहरों में ज्यादा आबादी

दस्तकार जातियां होने के चलते ये जातियां देहात की बजाय शहरी इलाकों में ज्यादा हैं क्योंकि इनकों गांवों के मुकाबले शहरों में अच्छा रोजगार मिल जाता है। बताया जाता है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में इन एक दर्जन जातियों के 28 से 32 हजार तक मतदाता है। जो किसी भी पार्टी की हार-जीत तय करने में अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं।

ओबीसी की जिन जातियों को कांग्रेस ने आज तक प्रतिनिधित्व नहीं दिया है, उनमें सेन, तेली, सोनी, दर्जी, स्वामी, सिरवी, बंजारा लुहार और सतिया सिंधी हैं।

वहीं दूसरी ओर धाकड़ जाति को 2018 में मांडल में हुए उपचुनाव में प्रतिनिधित्व दिया गया था। इसके अलावा जांगिड़ व कुमावत को भी वर्ष-2013 में प्रतिनिधित्व दिया जा चुका है।

 

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