टिकट वितरण को लेकर पार्टियां परेशान, प्रत्याशी के नाम पर बार-बार मंथन, नाराजगी न बन जाए हार का कारण, इन्हीं सब के बीच सत्ता हासिल करने के लिए जादुई आंकड़े तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं दोनों पार्टियां।
बीकानेर। विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण की राह इतनी आसान नहीं है बल्कि कांटों भरी है। टिकट की तरफ टकटकी लगाए रखने वालों की तादाद ज्यादा होने की वजह से परेशानी भी दोनों बड़ी पार्टियों को है।
वरिष्ठ नेता किसी प्रत्याशी का नाम फाइनल करने या किसी की टिकट काटने से पहले बार-बार सोचने, मंथन करने को मजबूर नजर आ रहे हैं। साथ ही साथ उन्हें यह आशंका भी खाए जा रही है कि नाराजगी के चलते कहीं कोई घमासान न हो जाए।
इन दोनों ही पार्टियों की गतिविधियों का केन्द्र अब जयपुर की बजाय दिल्ली हो गया है। कांग्रेस व भाजपा के शीर्ष प्रांतीय नेताओं ने प्रक्रिया को पूरी कर सूची को अंतिम रूप देने के लिए अपने-अपने आलाकमान के सामने रख दी है।
राष्ट्रीय स्तर के जिन नेताओं को प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई है, वे प्राप्त सूची के आधार पर अपनी अनुशंषा करने के काम में जुटे हैं। इस महत्वपूर्ण काम में वे सिर्फ अपने निजी स्टाफ का ही सहयोग ले रहे हैं।
भाजपा में मारामारी
सत्ता में होते हुए सत्ता को वापस लेना भाजपा के लिए चुनौती भरा साबित हो रहा है। इसी को देखते हुए पार्टी ने अपने स्तर पर कई सर्वे कराए थे, इनमें काफी विधायकों का रिपोर्ट कार्ड खराब रहा।
इनकी टिकट काटने के संकेत करीब एक महीने पहले ही दे दिए गए थे लेकिन इनमें से कइयों के पक्ष में आए दो-तीन बड़े नेताओं के तेवर देख कर आलाकमान दोबारा से विचार करने की स्थिति में आ गया है।
कांग्रेस ने झोंकी ताकत सारी
भाजपा से सत्ता हथियाने के लिए कांग्रेस ने अपनी सारी ताकत झोंक रखी है। प्रदेश में दो बड़े नेताओं के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर होने के बावजूद हाइकमान की कोशिश यही है कि आपसी फूट का संदेश आमजन में नहीं पहुंचे।
टिकट वितरण में इस बात पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। विधानसभा चुनाव में जोर इस बात पर है कि प्रत्याशी जिताउ हो और पार्टी सरकार बनाने लायक जादुई आंकड़े तक पहुंच सके।











