thenews.mobilogicx.com दरअसल उस वक्त भाजपा से जुडऩे का मतलब आज की तरह केवल सत्ता का स्वाद नहीं संघर्ष का रास्ता भी होता था। जुड़ते वक्त विचारधारा महत्वपूर्ण होती थी। ऐसे समय में किसान परिवार में जन्मे एक नौजवान ने भाजपा का दामन थामा। उस जमाने में उसी नौजवान के गृह जिले से के दूसरे नेता का बोलबाला भी शुरू ही हुआ था। ये नौजवान और कोई नही वर्तमान में चुनाव संचालन समिति के सहसंयोजक और भाजपा के प्रवक्ता सतीश पूनिया थे।
शुरू से ही संघ विचारधारा से पोषित पूनिया राष्ट्रवाद और सिद्धांतों की राजनीति के बलबूते धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहे थे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भाजयुमो के सफर के दौरान ही इस युवा नेता की वाकपटुता और प्रभावी भाषण कला ने वरिष्ठ नेताओं को भी प्रभावित किया। लेकिन जब भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर सतीश पूनिया को जिम्मेदारी दी गई तो पूनिया ने अपने आपको बेहतर संगठनकर्ता के तौर पर सिद्ध किया साथ ही राज्य में तेजतर्रार युवा नेता के तौर पर स्थापित भी हो गए। उस दौरान सम्राट पृथ्वी राज चौहान स्मारक से महाराजा सूरजमल की स्थली तक निकाली गई पदयात्रा खासी चर्चित रही। मुद्दों पर समझ और सिद्धांतों के प्रति निष्ठा के चलते कई बार कुछ नेताओं से पार्टी के भीतर भी टकराहट की स्थिति बनी लेकिन भाजपा के प्रति निष्ठा से बड़ा उनके लिए कुछ नहीं था। पार्टी ने भी पूनिया की महत्ता को समझते हुए 2004 से 2014 तक 4 बार प्रदेश महामंत्री की महत्ती जिम्मेदारी दी। शिक्षित, मृदुभाषी लेकिन तर्कवीर सतीश पूनिया ने इस दौरान केन्द्र के नेताओ के सम्पर्क में आए तो साथ ही संघ से भी सतत सम्पर्क में रहे। राजनीति में ऐसे बहुत कम मौके होते है जब नेता मिली हुई टिकट को लौटा दे लेकिन जब भाजपा ने एक बार फूलचंद भिंडा की टिकट काटकर पूनिया को दी तो किसान नेता ने विनम्रता से टिकट लौटा दी भले लोगो ने इसे हार का डर बताया लेकिन पूनिया की सोच थी कि वरिष्ठ कार्यकर्ता की टिकट काटना अनुचित था पूनिया सही साबित हुए भिंडा आज भी विधायक है।
पिछले चुनाव में पार्टी ने उन्हें आमेर से प्रत्याशी बनाया। मोदी की आंधी में कुछ अपनों की बेवफाई भारी पड़ी और महज 329 के अंतर से चुनाव हार गए। लेकिन हार के बाद भी सतीश पूनिया जनता के बीच डटे रहे । सतीश पूनिया ने वाजपेयी की पंक्तियों क्या जीत में क्या हार में को अपना ध्येय वाक्य बनाते हुए काम किया। लगातार जनता के बीच डटे रहे । जनता के दु:ख दर्द में ही साथ नही रहे अपितु क्षेत्र के विकास को लेकर बेहद गम्भीर रहे। 100 करोड़ से अधिक के विकास कार्य करवाए मानों सतीश पूनिया हार कर भी क्षेत्र के लोगो का दिल जीतने की कोशिश में जुटे रहे जिसमें बहुत हद तक कामयाब भी रहे। लेकिन राजनीति में केवल विकास या काम ही हार जीत तय नहीं किया करते है।
इस बार पूनिया फिर मैदान में है। चुनाव संचालन समिति के सहसंयोजक और भाजपा के प्रवक्ता सतीश पूनिया सोशल मीडिया पर भी एक्टिव नजर आते है। एक बात जो सतीश पूनिया को सोशल मीडिया पर खासतौर पर फेसबुक पर दूसरे नेताओं से अलग करती है वो शायद ये है कि अक्सर वे अपनी पोस्ट खुद लिखते है और बहुत सारे फैन्स की प्रतिक्रिया पर जवाब भी देते है । इस बार आमेर विधानसभा में मुकाबला भी रोचक है। देखना दिलचस्प होगा कि क्या आमेर की जनता एक लीडर को विधानसभा भेजेगी?
