सृजनात्मक चरित्र का शहर है..बीकानेर

उद्भव काल से ही बीकानेर शांतिए समन्वय और त्याग की प्रवृत्ति का शहर रहा है। मिट्टी की कला से अपनी कला या सृजन यात्रा का आगाज करने वाला शहर आज कला नगरी के रूप में चर्चित है। राजा लूनकरण के समय से लक्ष्मीनाथ मंदिर के निर्माण से स्थापत्य की जो यात्रा शुरू हुईए कालान्तर में मुलतान संस्कृति के प्रभाव से उस्ता और जयपुर से मथेरण आदि कलाओं का यहाँ से जुड़ना एक विशेष परिघटना रही। जिसने नगर के सृजन चरित्र को आकार देने का कार्य किया। यहाँ के ही निवासियों में मिरासी जाति के योगदान से संगीतए लोकसंगीत की कई.कई शैलियां व उनके कलाकार निकले। चूनगरों की आला.गीला ;जिसे फ्रेंसको भी कहा जाता हैद्धए जिस पर ईरानी कला का प्रभाव था। वह भी यहाँ बहुत प्रचलन में रही।
डूमए दमामी और अन्य गायक जातियों के साथ गोस्वामी जाति ने यहाँ के कला माहौल को गति दी। वाणी गायनए भजनए जागरणए जम्मा के साथ स्थापत्यए कोरनी तथा साहित्य.संस्कृतिए ललित कलाओं के साथ विचार के क्षेत्र में भी नगर ने अपने को नए तेवर के साथ समाज के सामने रखा।
फलस्वरूप नगर का सृजनात्मक चरित्र बना और आज मरुनगरी किसी भी कला नगरी से कम नहीं है।

–डॉ.ब्रजरतन जोशी

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