सवर्णों का भारत बंद, तीन स्थानों पर धारा 144, हिंसा का माहौल

नई दिल्ली। एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ सवर्णों के करीब 35 संगठनों ने आज भारत बंद का ऐलान किया है। बंदी को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। भारत बंद के तहत मध्य प्रदेश सबसे संवेदनशील बना हुआ है, जहां पुलिस और प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद हैं। इस राज्य में एससी-एसटी एक्ट को लेकर सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है।

राज्य में केंद्रीय मंत्रियों का घेराव के अलावा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर जूता फेंकने, गाड़ी पर पथराव तथा काले झंडे दिखाए जाने की अनेक घटनाएं हुईं। राज्य में स्कूल और कॉलेजों को बंद कर दिया गया है। साथ ही पेट्रोल पंप भी दिन भर बंद रहेंगे। भारत बंद का असर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा सहित कई अन्य राज्यों में देखने को मिल सकता है।

देश भर के 100 से अधिक संगठनों ने इस भारत बंद का आह्वान किया है। बिहार में भी बंद का अच्छा-खासा असर देखने को मिल सकता है। अपनी मांग को लेकर कई दिनों से सवर्ण संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहा है। बिहार के आरा में सवर्णों ने आरा रेलवे स्टेशन के पास लोकमान्य तिलक एक्सप्रेस को रोक दिया गया है।

यहां लोगों का कहना है कि एससी/एसटी कानून में जल्द बदलाव नहीं किया गया तो इससे भी बड़ा आंदोलन देश में होगा। इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए मध्य प्रदेश के तीन जिलों मुरैना, भिंड और शिवपुरी में एहतियातन धारा 144 लागू कर दी गई है. केंद्र सरकार द्वारा एससी/एसटी एक्ट में संशोधन किए जाने के विरोध में सवर्ण समाज, करणी सेना, सपाक्स एवं अन्यों द्वारा 6 सितम्बर को भारत बंद के आह्वान को मद्देनजर यह आदेश जारी किया गया है.

बताया जा रहा है कि ये भारत बंद करणी सेना की अगुवाई में किया जा रहा है. कऱणी सेना की भारत बंद की ये ललकार मध्य प्रदेश से निकलकर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी की परेशानी बढ़ा सकती है, क्योंकि राजस्थान में इस संगठन का बड़ा प्रभाव है.

पिछली बार भारत बंद एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को बुलाया था. तब सबसे ज्यादा हिंसा मध्य प्रदेश के ग्वालियर और चंबल संभाग में हुई थी. इस वजह से इस बार मध्य प्रदेश प्रशासन इस बार भारत बंद को देखते हुए पूरी तरह सतर्क है.

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी।शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए।

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