सितंबर 2016 में हुई सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो हमारे कई टीवी चैनलों ने एक साथ दिखाए। मुझे जरा आश्चर्य हुआ। डेढ़-पौने दो साल बाद इन्हें दिखाने की कौनसी जरूरत आन पड़ी? जब कई चैनलों ने इन्हें एक साथ दिखाया तो बात समझ में आ गई। यह सरकारी आयोजन रहा होगा। या तो दिखाने का आदेश हुआ होगा या उन्हें विज्ञापन बताकर उनका दिल खोलकर भुगतान किया गया होगा। दोनों का, सरकार और इन चैनलों का क्या उन वीडियो से सम्मान बढ़ा है? दोनों की इज्जत पर प्रश्न चिन्ह लगे हैं। चैनलों ने पैसे न खाए हों तो भी प्रश्न यह उठता है कि इन चैनलों ने अपने एंकरों को जोकरों में क्यों बदल दिया?
कुछ प्रतिष्ठित एंकर हमारे राजनेताओं और महान देशभक्त अरुण शौरी जैसे विद्वान पत्रकार को पाकिस्तान का प्रवक्ता सिद्ध करने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें यह बोलते और दिखाते हुए जरा भी शर्म नहीं आ रही थी। वे बार-बार मेरा नाम लिए बिना मेरे शब्द ‘फर्जीकल स्ट्राइक’ को दोहरा रहे थे। वे हर एक-दो मिनिट में पूछते थे कि सर्जिकल स्ट्राइक को राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, संजय निरुपम और डाॅ. शौरी ने ‘फर्जीकल स्ट्राइक’ क्यों कहा ? ‘फर्जीकल स्ट्राइक’ तो सबसे पहले मैंने कहा था। मुझसे पूछते तो मैं उनको बताता।
जो चारों वीडियो दिखाए गए, उन्हें सर्जिकल स्ट्राइक कहना तो बहुत दूर की बात है। उनमें तो मक्खी-स्ट्राइक भी नहीं दिखाई दी। हमारी बहादुर सेना का इससे बड़ा अपमान क्या होगा ? सर्जिकल स्ट्राइक वैसी होती है, जैसे कोई सर्जन चाकू चलाता है। जैसे 2003 में अमेरिका ने बगदाद में, 1976 में इस्राइली कमांडो ने उगांडा के एंटबी हवाई अड्डे पर और 1981 में ओसीराॅक के परमाणु संयंत्र पर इस्राइल ने किया था। पिछले हफ्ते अफगानिस्तान में फजलुल्लाह पर अमेरिका के ड्रोन हमले और कुछ साल पहले उसामा बिन लादेन की हत्या को आप सर्जिकल स्ट्राइक कह सकते हैं।
जैसा सिंतबर 2016 में हमारी फौज ने किया था, वैसा और उससे भी कहीं गंभीर हमले हमारी फौज पहले भी सैकड़ों बार कर चुकी है लेकिन नरसिंहरावजी, अटलजी और डाॅ. मनमोहनसिंह ने उस तरह से झांझ नहीं कूटे, जिस तरह से आजकल हमारी सरकार कूट रही है। यह उसके आत्म-विश्वास की कमी और रक्षा मामलों की नादानी का प्रतीक है।