बनाई रांका ने पहचान, लेकिन आगे की राह नहीं आसान
बीकानेर। कहते है रांका कभी बेहद गरीब हुआ करते थे लेकिन आज उनकी गिनती बीकानेर के कुछ प्रमुख भामाशाहों में होती है। हालांकि इसके पीछे कई कहानियां हैं जिन पर चर्चा आज जन्मदिन पर नहीं फिर कभी। महावीर रांका जब व्यापारिक तौर पर स्थापित हो गए तो उन्होंने राजनीति की राह पकड़ी। उनके समक्ष बड़ी चुनौती थी कि कोई बड़ी पारिवारिक पहचान नहीं और दूसरा कि उन्हीं के क्षेत्र के कई नेता पहले से स्थापित थे। ऐसे में रांका ने सबसे पहले जिला भाजयुमो में एंट्री की। वे कोषाध्यक्ष बनाए गए। https://thenews.mobilogicx.com
कहते हैं एक समय में जिला भाजपा के संगठन उनकी आर्थिक मदद से चला करता था। विनम्रता और सेवाभाव के चलते वे लगातार भाजपा के बड़े नेताओं के सम्पर्क में आते गए, लेकिन राजनीति में सदैव एक सा नहीं होता। तत्कालीन अध्यक्ष ने छिटकाया तो कुछ दिनों बाद आए नए अध्यक्ष ने रांका को कार्यकारिणी लायक ही नहीं समझा। रांका महामंत्री का पद चाहते थे लेकिन वो पद उन्हीं की जाति के मजबूत नेता ने हथिया लिया। रांका सक्रिय राजनीति में रहकर भी दूर से हो चले थे। वहीं विरोधी भी ये मान बैठे थे कि अब रांका का उपयोग पार्टी फंड में मदद का ही रहेगा। हालांकि रांका छटपटाहट में थे लेकिन दाल गल नहीं रही थी। ऐसे वक्त में ही सांसद कैम्प में कभी बेहद सक्रिय रहे रांका कि सांसद बेटे से हुई अनबन के बाद रांका को स्थानीय सहारा नहीं था। ऐसे में रांका भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष रहे नन्द सोलंकी के साथ दिखने लगे। लेकिन रांका शायद अपने धनबल और लगन से लगातार प्रदेश आलाकमान को साधने की जुगत में लगे दिखाई दिए।
स्थानीय स्तर पर तमाम विरोधों को धता बताते हुए जब महावीर रांका का यूआईटी अध्यक्ष बनने की सूचना एक स्थानीय चैनल पर फ़्लैश हुई तो उनके विरोधी इसे कुछ देर तक तो गलत ही मानते रहे। बस उसके बाद रांका का रथ परवान चढ़ता रहा। रांका जिन्हें विरोधी ‘गैला’ कर उपहास करते थे सियासत में शातिर साबित हुए वे समझ गए थे कि यूआईटी अध्यक्ष का ताज तो उन्होंने अपने दम पर लिया है लेकिन इसे चलाना कांटों पर चलने जैसा है।
ऐसे में जब सीएम राजे ने रांका की नियुक्ति का क्रेडिट देवी सिंह भाटी को दिया तो रांका स्थिति भांपते हुए पूरी तरह से देवी सिंह भाटी के कैम्प में शामिल हो गए। इसका फायदा ये रहा है कि धनबल में बाहुबल भी जुड़ गया और रांका के विरोध के स्वर खुसर-पुसर से आगे नहीं बढ़ पाए।
तमाम अंतर विरोधों के बावजूद रांका ने जमकर काम किया। शहर में गिनाने लायक विकास कार्यों में यूआईटी कार्यों के अलावा सूक्ष्मदर्शी से देखने के बाद ही कोई काम नजर आता है ये सच है भले ही लोग इसे रांका का मीडिया मैनेजमेंट बताते हो लेकिन ये सच है मौकों पर मीडिया ने रांका को आइना भी दिखाया लेकिन रांका काम पर जुटे रहे।
सूरसागर पर सीएम की चुनौती को अवसर में बदल दिया। लोगों ने खूब मजाक भी बनाई पर रांका जानते थे कि मैडम के अलावा कोई विकल्प नहीं है इसलिए आखिर उन्होंने सूरसागर पर डेरा लगा दिया। आखिर कामयाब रहे। हेलमेट वितरण, साड़ी वितरण जैसे ख़र्चीले कार्यक्रम कर रांका आलाकमान के नजर में रहे। कार्यकर्ताओ का जन्मदिन शान से मनाने वाले रांका आज अपना जन्मदिन मना रहे हंै लेकिन आचार संहिता के डण्डे के चलते शायद भव्यता नदारद रह सकती है।
रांका इस बार विधायक की टिकट की दावेदारी भी ठोक रहे हैं उनका कैम्प कॉन्फिडेंट भी है। वहीं ये सच है कि पैनल में उनका नाम भी है। हालांकि ‘खबर द न्यूज’ का आकलन है कि मजबूत दावेदारी के बाद ही उन्हीं की पार्टी के दलित नेता की अड़ंगी उन्हें भारी पड़ेगी। ऐसे में सम्भवतया उन्हें टिकट का शायद अगली बार इंतज़ार करना पड़े।













