बच्चोंं की समर वेकेशन एक मांं के लिए भी राहत भरी होती है। घर मेंं बच्चे खाली न बैठे इसकी जिम्मेदारी मांं पर ही होती है।
छुट्टियों से पूर्व मैं अपनी एरोबिक्स क्लास जाती थी, उसे छोड़ 40 दिन की छुट्टियों में से 25 दिन घर पर बच्चोंं के साथ योग किया, बेटे को कई कठिन जम्प करवाये वहींं बिटियां के शरीर की लचक देख कर हम हैरान भी हुए।
अलावा वर्कआउट के बच्चों के साथ लग कर कई क्रिएटिव वर्क जैसे पेबल आर्ट , एसेसरीज बॉक्स मेकिंग, क्लॉथ डॉल आदि-आदि किए, वहींं एक ही दिन में दो-दो फिल्मेंं का रिकॉर्ड भी बनाया।
घर में नए पुराने खिलौनों की दुकान सजती, घरेलू सामान का नवाचारी उपयोग करते हुए बैट के तौर उपयोग कर कई वाइपर तौड़े। घर में झूला होने के बावजूद दरवाजों के लटकते पर्दों को झूले बना टोर्जन बनने की प्रैक्टिस भी की।
इतना ही नहीं धूप में तैयार होते आम के अचार के मर्तबान को फुटबॉल का गोल पॉइंट मान सटीक निशाने भी लगाए। ये सब करने को ऊर्जा की जरूरत होती तो बर्फ के गोले बनाने की मशीन दिन में दो-दो बार घूमाई जाती और शर्बत डाल डाल कर नए नए फ़्लेवर के छत्ते भी बच्चोंं के साथ खूब बनाए।
मानसिक खुराक का भी पूरा ध्यान रखा, दोनोंं बच्चोंं की उम्र के हिसाब से घर में कहानियों की किताबोंं में इज़ाफ़ा हुआ।
अलावा इसके नित नई फरमाइशों के चलते नई-नई डिशें बनाने में मेरा दिन तो ऐसे गुजरता कि पता ही नहीं चलता….मगर इन सब के पीछे सबसे आनन्ददायक था वह योगा ही जो सुबह-सुबह बच्चोंं संग डेढ़ घंटे में सम्पूर्ण होता, लगता है वही हमें दिन भर सक्रिय रखता।
आज से छुट्टियां खत्म हो गई साथ ही इन सभी क्रियाकलापों पर विराम भी लग गया, इस सन्तुष्टि के साथ कि बच्चोंं को मनोयोग से योग करवाना सुखद रहा।
ऐसा सब तब है, जब मेरे घर मे टी वी नहींं है।
–प्रवीणा जोशी, गृहिणी