दलितों का दम, बदल सकते है समीकरण, क्या साथ ला पायेंगे शाह ?

4 को शाह का बीकानेर दौरा, चुनौती बने हैं दलित नेता

बीकानेर। प्रदेश में चुनावी हलचल अब काफी बढ़ चुकी है वहीं बीकानेर में भी सियासी मेला प्रारंभ हो चुका है। बस कुछ दिनों में आचार संहिता लग जाएगी और चुनावी रणभेरी बज उठेगी। चुनावी चौसर की बात करें तो चुनाव से ठीक पहले राजस्थान में जातिगत समीकरण खासे हावी हो चले हैं।

भाजपा से राजपूतों के नाराज होने की बात कही जा रही है वहीं जाट अभी सियासी हवा का अंदाजा लगा रहे हैं। ऐसे में भाजपा दलितों व मूल ओबीसी पर डोरे डालने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस का हाथ हाथी का साथ तलाश रहा है। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बीकानेर आगमन पर संभाग का दलित सम्मेलन रखा गया है, वजह साफ है कि अनुसूचित जाति के सर्वाधिक वोट इसी संभाग में है और बहुत सी सीटों पर निर्णायक भी है।

बीकानेर संभाग में दो संसदीय क्षेत्र बीकानेर और श्रीगंगानगर एससी के लिए आरक्षित है तो संभाग की 5 सीटें भी एससी के खाते में है, लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि संभाग की बाकी 19 सीटों पर दलितों का साथ आना या छिटकना हार-जीत तय करने में महत्वपूर्ण होता है।

सवर्णों और दलितों में एससी एक्ट को लेकर खाई और भी गहराई है। ऐसे में भाजपा लगातार दलितों को साधने के लिए प्रयासरत है। केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल को कैम्पेन कमेटी का सहसंयोजक बना कर भाजपा ने दलितों के लिए संदेश भी छोड़ा है। लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि भाजपा के भीतर ही दलित नेताओं में पटरी नहीं बैठ रही है। फिर भी अमित शाह के दौरे के दौरान इन दलित नेताओं पर दारोमदरा रहेगा।

 

शाह दिखा सकते हैं कारीगरी

अमित शाह के दौरे के तुरन्त बाद राहुल गांधी भी बीकानेर में 10 अक्टूबर को आम सभा को संबोधित करेंगे। जमींदारा पार्टी की सुरक्षित सीट से विधायक को कांग्रेस अपने साथ लेकर सन्देश भी दे चुकी है कि जोड़तोड़ में पीछे नहीं रहेंगे। भाजपा के लिए दिक्कत आपसी खटपट ज्यादा है। खासतौर पर संसदीय सचिव डॉ विश्वनाथ मेघवाल और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के रिश्ते भी जगजाहिर है।

बताया जाता है कि भाजपा की आंधी में देवी सिंह भाटी जैसे कद्दावर नेता को पटखनी देने में दलितों की बड़ी भूमिका रही और वो भी भाजपा के ही एक बड़े दलित नेता के इशारे पर। बाद में भाटी ने कुछ आंकड़े भी सीएम तक पहुंचाए लेकिन कहते है ना ‘अब पछताए क्या होत..’ देखते हैं 4 अक्टूबर को अमित शाह के सामने दलित नेताओं की गुटबाजी सामने आती है या एकजुटता। साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह भी अपनी कारीगरी दिखा कर दलित नेताओं को भाजपा से जोड़ें तथा दलित नेताओं की खींचतान थम जाए।

 

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