तब अड़े आडवाणी आज हाथ मलते खड़े हैं

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्वस्थता के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंतसिंह के सुनाए किस्से याद हो आए।

बात 2002 के गुजरात नरसंहार के बाद की है। गोवा में भारतीय जनता पार्टी कार्यसमिति की बैठक थी। दिल्ली से उड़े विमान में चार ‘सरकारें’ थीं। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, वित्त एवं विदेश मंत्री जसवंतसिंह और वाणिज्य मंत्री अरुण शौरी।

आसमान में थोड़ी देर बाद कसमसाए वाजपेयी जसवंतसिंह के मुखातिब आडवाणी को सुनाने के मकसद से बोलने लगे, ‘गुजरात का क्या करना है, आप कहते रहते हैं कि विदेशों में हर बार शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।’ इस संवाद के बाद के सन्नाटे के बीच अचकचाए आडवाणी टॉयलेट चले गए।

इस बीच वाजपेयी ने शौरी से भी कहा कि आप भी कहते हैं कि गुजरात नरसंहार के बाद से विदेश व्यापार में अनुकूलताएं लगातार घट रही हैं तो नरेंद्र मोदी से इस्तीफा लेने को कहेंं आडवाणीजी से।

थोड़ी देर में आडवाणी सीट पर लौट आए, जसवंतसिंह और अरुण शौरी दोनों ने बात शुरू की ही थी कि आडवाणी बोल पड़े, ‘पार्टी में बवेला खड़ा हो जाएगा।’

यह बोल कर जिन आडवाणी ने तब तीनों की बोलती बंद की, उन्हीं आडवाणी की मन की व्यथा को सहलाने के लिए आज अरुण शौरी के अलावा ना वाजपेयी हौश-हवास में है और ना ही जसवंतसिंह।

किस्सा संसद भवन का

इसके बाद की एक और घटना जिसे जसवंतसिंह ने एक टीवी शो में शेखर गुप्ता से भी कही….

संसद का अधिवेशन चल रहा था, नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री काल में हुए 2002 के गुजरात नरसंहार को लेकर वाजपेयी संसद के सामने अपने को असहज पा रहे थे। एक दिन कुछ ज्यादा ही विचलित थे, प्रमोद महाजन को भनक लगी कि प्रधानमंत्री इस्तीफे का मन बना चुके हैं, महाजन ने जसवंतसिंह को सूचित किया कि तुरंत आइए, गड़बड़ होने वाली है।

जसवंतसिंह संसद भवन स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे, प्रधानमंत्री का मिजाज ठीक नहीं था, सचिव से कागज मांग इस्तीफा लिख रहे थे, सिंह ने नजाकत को समझा तथा सचिव को बाहर जाने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से बात को संभाला।

(इस घटना का जिक्र जसवंतसिंह से जिन्होंने सुना, उनसे सुनी)

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