1 जून से 10 जून 2018 तक किसान बचाओ देश बचाओ राष्ट्रीय किसान महासंघ समेत सैकडों किसान संगठनों का देशव्यापी किसान आंदोलन
देश को आजाद हुए 70 साल से अधिक समय हो चुका है, लेकिन किसानों की स्थिति आज भी चिंताजनक है, आजादी के तत्काल बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश के किसानों का आह्वान करते हुए कहा था देश के निर्माण मेंं किसान का योगदान जरूरी है, उसके लिये आवश्यक है कि देश का किसान त्याग करे, उस दिन से लेकर आज तलक मुल्क का किसान लगातार त्याग ही करता चला आ रहा है।
आज जब देश की वर्तमान हुकुमत इस बात को लेकर खुद की पीठ खुद ही थपथपा रही है कि किसान के हालात पहली बार आजादी के बाद पिछले 4 वर्ष के समय में बेहतर हुए हैंं तो ये जानना जरूरी हो जाता है कि मौजूं वक्त में वो कौनसी वजह है कि पूरे देश का अन्नदाता सड़कों पर उतर आया है।
इसकी वजह की पड़ताल करने को हम थोड़ा पीछे चलेंगे तो देखेंगे कि साल 2004 के मई महीने मे हिंदुस्तान मे कांग्रेसनीत यूपीए की गठबंधन सरकार बनी, उसी साल नवंबर में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता मे राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया , इस आयोग ने 2 साल मेंं 6 रिपोर्ट तैयार की और अक्टूबर 2006 में अपनी रिपोर्ट हुकुमत को सौंप दी, इस रिपोर्ट मे किसानों की फसलों का लागत मूल्य से दुगने दाम पर खरीद, कर्ज वसूली में राहत, फसल बीमा, उच्च गुणवत्ता के बीज कम दाम में किसान को उपलब्ध करवाने, गांवों मे किसानोंं के लिये विलेज नाॅलेज सेंटर, खेतीहर जमीन को गैर कृषि उदेश्यों मे ना देने, किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाया जाए, प्राकृतिक आपदा की स्थिति में स्थिति सामान्य होने तक किसानों के ब्याज मे राहत, खेती के लिये कर्ज की व्यवस्था हर गरीब और जरूरतमन्द को मिले, इन समेत कई सिफारिशें की गयी लेकिन आयोग द्वारा की गयी सिफारिशों को लागू नहीं किया गया।
देश भर के किसान संगठन लगातार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग करते रहे, 2014 में देश की जनता ने सत्ता बदली, मोदीजी देश के प्रधानमंत्री बने जिन्होंंने सत्ता मे आने से पहले देश के किसानों से अपने घोषणापत्र में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की बात की थी, लेकिन इस सरकार के 4 साल गुजरने के बाद किसान के हालात बद से बदतर होते चले गये है, फसल के वाजिब भाव नहीं मिल रहे, किसान कर्ज मे डूबा हिम्मत हार रहा है, आत्महत्या को मजबूर हो चुका है।
इन्हीं मुद्दोंं को लेकर पिछ्ले साल मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसानों का संघर्ष शुरू हुआ, किसानों पर गोली चली बाद में आन्दोलन और उग्र हो गया, उसके बाद पूरे देश में आन्दोलन हुआ और अब इसी वजह से किसान आन्दोलन की आग पूरे देश मे फैल गयी, सैकड़ों किसान संगठनों ने एक साथ मिलकर इस आन्दोलन को शुरू किया है, इस बार किसानों ने असहयोग का रास्ता अपनाया है, किसानों ने अपना दूध, फल, सब्ज़ी, फसल को शहरों, मंडियों तक ना ले जाने का फैसला किया है और गांव बंद का एलान किया है।
राजस्थान के संदर्भ में
राजस्थान में भी इन मुददों को लेकर किसान आन्दोलन की राह पर है, इसी साल फरवरी मे किसानों ने कर्ज माफ़ी की मांग को लेकर प्रदेश की सड़कों को जाम किया, सीकर से जयपुर जाने का हर रास्ता किसानों ने रोक दिया, 48 घण्टे तक उत्तर-पश्चिमी राजस्थान का संपर्क राजधानी से टूट गया, सरकार और किसान नेताओं के मध्य वार्ता हुई और प्रदेश के किसानों का 50,000 रुपये माफ करने की बात पर सहमति भी बनी।
लेकिन अब स्वामीनाथन आयोग रिपोर्ट लागू करने की मांग को लेकर अब पूरे प्रदेश मे किसान स्वतः स्फूर्त आंदोलन पर उतर आये है, प्रदेश के किसान संगठन भी आन्दोलन के साथ खड़े नजर आ रहे हैंं, किसान आन्दोलन का असर पूरे प्रदेश मे दिख रहा है, लेकिन जयपुर, जोधपुर, अजमेर जैसे प्रदेश के बड़े शहर अभी तक “गांव बंद” के प्रभाव से अछूते दिख रहे हैंं।
बीकानेर संभाग
किसानों के “गांव बंद” आन्दोलन का बीकानेर सम्भाग मे जबरदस्त असर है, तमाम किसान संगठन, किसान नेता और किसान पुरजोर तरीके से इस आन्दोलन मे लगे हैंं। बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू–इन
चारों जिलों मे किसान दूध, सब्ज़ी, फलों और फसलों को शहर, मण्डी तक नही ले जा रहे हैंं, किसानों के प्रतिनिधिमंडल ने गांवोंं से शहर को जाने वाले रास्तों के चौराहों पर नाके लगा रखे है, किसान दूध डेयरियों के सामने धरना लगाकर बैठे हैंं, कुछेक मंडियों को छोडकर पूरा संभाग किसानों के गांव बंद आन्दोलन की जद मे है।
बीकानेर जिला
बीकानेर जिले में “गांव बंद” आन्दोलन का गहरा असर है, बीकानेर जिले में पशुपालन किसानों की आजीविका का महत्वपूर्ण जरिया है, बीकानेर जिले की लूनकरनसर तहसील तो किसी समय में दूध उत्पादन में एशिया का डेनमार्क कहा जाता था, लेकिन दूध के गिरते भावों से किसानों का इससे मोहभंग भी हुआ, फ़िर भी इस “गांव बंद” आंदोलन मे पूरे जिले का किसान पूरी ताकत से लगा है, पशुपालकों ने अपना दूध गांवों से बाहर नहीं भेजा है। सब्ज़ी, फल बाज़ार भी आन्दोलन के 4 दिन गुजरने के बाद आंशिक रुप से ही सही, लेकिन यहां भी अब किसानों के “गांव बंद” का प्रभाव मे नज़र आ रहा है। गांवों की युवा पीढ़ी आन्दोलन का दारोमदार अपने कन्धों पर लिये मजबूती से चाक चौबंद है। किसान संगठन और किसान नेता भी किसानों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़े है।
4 दिन बीतने के बाद अभी तो किसानों का गांव बंद आन्दोलन मजबूत दिख रहा है जो आने वाले समय मे देश, प्रदेश की हुकमत के लिये गले की फांस भी बन सकता है।
–महिपाल सारस्वत, एडवोकेट












