कुलदीप नैयर के होने और ना होने के मायने

2454

भारतीय पत्रकारिता के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुलदीप नैयर नहीं रहे। बुधवार रात उनका निधन हो गया। वह 95 वर्ष के थे। उन्होंने लंबी उम्र पाई, जमकर काम किया, निर्भीक होकर लिखा और बोला। लगातार सक्रिय रहे। बेमिसाल शख्सियत। अपने बाद की कम से कम दो पीढ़ियों के हर सरोकारी पत्रकार को वह प्रेरक और संरक्षक लगते थे।

अपने लंबे पत्रकारिता जीवन में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ जैसे प्रमुख अखबार के संपादन के अलावा उन्होंने अनेक अखबारों में स्तम्भ लिखे। इमरजेंसी के दौरान शासन की निरंकुशता का विरोध करने के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। पर वह अपने विचारों पर दृढ़ रहे। भारत-पाकिस्तान रिश्तों को सुधारने की जरूरत पर उन्होंने न सिर्फ बल दिया बल्कि उसके लिए एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह काम भी किया। सांप्रदायिकता और युद्धोन्माद का उन्होंने जीवन-पर्यन्त विरोध किया।

अपनी मशहूर आत्मकथा ‘बियांड द लाइंस’ के अलावा उन्होंने दर्जन भर से ऊपर किताबें लिखीं। ‘बिटविन द लाइंस’ उनकी बहुचर्चित और बहुपठित किताब है! कुछ साल वह ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त भी रहे। भारतीय संसद के उच्च सदन–राज्यसभा के सदस्य के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय और वैश्विक महत्व के मुद्दों पर होने वाले विमर्शों में अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज कराई!

निजी तौर पर मुझे उनका अपार स्नेह और समर्थन मिला। अब से लगभग आठ साल पहले राज्यसभा टीवी के कार्यकारी संपादक के रूप में नियुक्त होने के कुछ दिनों बाद उनसे मिलने गया। मैंने नये चैनल के प्रस्तावित परिप्रेक्ष्य, कंटेंट और रूप आदि पर उनसे चर्चा की। वह बहुत खुश हुए और बोले, ‘ऐसे चैनल की भारत को बहुत जरुरत है!’ मैंने अनुरोध किया, ‘सर, बीच-बीच में आपको अपने स्टूडियो भी आमंत्रित करना चाहूंगा!’ वह सहर्ष तैयार हुए। चैनल शुरू होने के कुछ समय बाद, अपनी ‘गेस्ट कोआर्डिनेशन टीम’ के बजाय मैंने स्वयं उन्हें फोन किया : ‘सर, आज मैं एक कार्यक्रम में आपकी उपस्थिति चाहता हूं। क्या संभव होगा?’ वह आने को तैयार हो गये। चर्चा में भाग लेने वाले सभी चार मेहमानों में वह सबसे पहले आए। हम लोगों ने टीवी चर्चा से पहले चाय पीते हुए चैनल के कामकाज पर चर्चा की। वह चैनल के कार्यक्रमों से काफी संतुष्ट थे। उसके बाद भी वह समय-समय पर स्टूडियो आते रहे। जब तबीयत ठीक नहीं होती लेकिन बातचीत करने को राजी होते तो हम लोग उनके घर ओबी-वैन भिजवाते! राज्यसभा टीवी (RSTV) पर लंबे समय तक चले मेरे अपने कार्यक्रम ‘मीडिया मंथन’ में भी वह कई बार आए। वह जब कभी ‘मीडिया मंथन’ में आते, चर्चा को महत्वपूर्ण आयाम मिलता! RSTV में कार्यकाल बहुत संक्षिप्त रहा, बामुश्किल पौने दो साल। मेरे कार्यकाल के दौरान और उसके बाद भी चैनल को उनका भरपूर समर्थन और सहयोग मिला।
कश्मीर पर मेरी किताब ‘कश्मीर : विरासत और सियासत’ के नये संस्करण का सन् 2016 में उन्हीं के हाथों लोकार्पण हुआ।

सलाम और श्रद्धांजलि कुलदीप नैयर साहब! आप हमेशा हमें याद आयेंगे!

–उर्मिलेश, पत्रकार

अपना उत्तर दर्ज करें

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.