-पुखराज चौपड़ा
न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी उेचेे के तहत आने वाली पच्चीस फसलों के भाव केंद्र सरकार कमिश्नर फॉर एग्रीकल्चर कोस्ट एंड प्राइस (बंबच) की सिफारिश पर तय करती है। इस तरह तय किए गए भाव क्या किसानों को मुनाफा देते हैं, बिल्कुल नहीं। एम एसपी तय करने के फार्मूले में जमीन की कीमत का ब्याज और किसान की मजदूरी जोड़ें तो किसानी जबरदस्त घाटे का काम है। बावजूद इसके तय भावों पर सरकार पूरी फसल खरीद नहीं कर पाती है। ऐसे में किसानों को अपनी उपज ओने-पौने दामों में मंडियों में बेचनी पड़ती है। मसलन 4400 के भाव का चना 3400 में और 4000 की सरसों 3200 के भाव बिक रही है, किसान लाचार है।
यही कारण है किसान कभी कर्ज मुक्त होता ही नहीं है। वोटों की राजनीति जरूर थोड़ा कर्जा माफ करा देती है पर यह स्थाई हल नहीं है। कर्ज मुक्ति का हल तभी हो सकता है जब एमएसपी पर पूरी फसल सरकार खरीदे और एमएसपी भी लागत मय ब्याज और मजदूरी के आधार पर तय हो, और यह भी कि कृषि केन्द्र राज्यों के अधीन हो ताकि जवाबदेही तय हो सके।