2006 का मानसून राजस्थान के बाड़मेर जिले में यूं बरसा जैसे कहर बरसा हो, रेतीला रेगिस्तान पानीले रेगिस्तान में बदल गया। मीलों पसरे पानी में सैकडों जनधन और हजारों पशुधन खत्म हो गए।
सूबे में भाजपा की वसुंधरा सरकार थी तो केंद्र में मनमोहनसिंह के नेतृत्व में संप्रग की सरकार। ऐसे में राजनीति के संवेदनहीन की गुंजाइश ज्यादा हो जाती है। अगस्त के आखिर में संप्रग की चेयरपर्सन सोनिया गांधी बाढ़ प्रभावित लोगों के हाल जानने सर्वाधिक प्रभावित गांवों में एक मलवा पहुंची। भाजपा को काउंटर करना ही था, पड़ौस के शिव विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक के नेतृत्व में समर्थक जमा थे, विधायक डॉ. जालमसिंह रावलोत जोश मे कुछ होश खो बैठे, सोनिया को कुछ ज्यादा ही सुना गए, लोगों का कहना है कि वह लगभग अभद्रता ही थी। विदेशी से आई सोनिया को भारत की परम्परागत बहुओं की आदर्श कह सकते हैं, वहां भी उन्होंने इसका निर्वहन किया, थोड़ी असहज जरूर हुईं लेकिन बर्दाश्त कर चल दीं।
संचार और सोशलसाइट्स की त्वरा आज के जैसी नहीं थी, फिर भी दिल्ली बैठे अटलबिहारी वाजपेयी तक बात तत्काल पहुंच गई। तब तक वाजपेयी स्वस्थ थे. जिस तरह वे सक्रिय हुए उससे लगा घटनाक्रम सुन कर वाजपेयी जितने असहज हुए उतनी तो सोनिया खुद भी नहीं हुई होंंगी। तब बाड़मेर से भाजपाई सांसद मानवेन्द्रसिंह से उन्होंने तुरंत संपर्क साधना चाहा लेकिन मानवेंद्रसिंह खुद गांवों में थे तो संभव नहीं हो पा रहा था। वाजपेयी ने मानवेंद्र के पिता जसवंतसिंह को कहा कि मानवेंद्र तक मेरा संदेश पहुंचाएं कि वह तुरंत मेरे से बात करे। थोड़ी देर में वाजपेयी के पास मानवेंद्र का फोन आ गया। वाजपेयी ने घटना बताते हुए कहा कि आपदा के समय वह आप के क्षेत्र में आईं, उनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं होना चाहिए था।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर जब तक सोनिया गांधी बाड़मेर के सरकिट हाउस पहुंची तब तक क्षेत्र के सांसद मानवेंद्रसिंह भी पहुंच गए, सोनिया गांधी से ना केवल मिले बल्कि शिव से अपनी पार्टी के विधायक जालमसिंह के मलवा गांव में उनके व्यवहार के लिए माफी भी मांगी।
ऐसी सदाशयता और संवेदनशीलता अब लुप्तप्रायः हो रही है।











