अनिश्चितकालीन सामूहिक अवकाश पर पंचायतराज परिवार

जयपुर। राजस्थान पंचायतराज सेवा परिषद के आह्वान पर आज 12 सितम्बर 2018 को अनिश्चितकालीन सामूहिक अवकाश और कार्य बहिष्कार की शुरुआत समूचे राजस्थान की सभी 295 पंचायत समिति मुख्यालय पर शुरू हो गए हैं।
इस परिषद में पंचायत राज के तीन परिवार विकास अधिकारी, पंचायत प्रसार अधिकारी एव ग्राम विकास अधिकारी सम्मिलित है।
वर्तमान भाजपा सरकार के सुराज संकल्प पत्र में वर्णित बिंदु एवं पिछले तीन वर्षों में 9 बार आंदोलन के उपरांत लिखित व्यवहारिक समझौते के आदेश प्रसारित नही होने के कारण राजस्थान पंचायतीराज परिषद में घोर निराशा और आक्रोश हैं।
हमे मालूम है कि हमारे हड़ताल पर जाने के कारण आम जनता को परेशानी होगी किन्तु हमारी वाजिब मांगों के लिए हम जनसामान्य से मदद की अपेक्षा करते है क्योकि हम भी आम जनता का ही हिस्सा हैं। पिछले 5 वर्षों में डिजिटल इंडिया में हमने हाड़तोड़ मेहनत की हैं।
हर घर में शौचालय- 2011 में गुजरात की एक फर्म को ऑनलाइन राशनकार्ड बनाने का टेंडर दिया जिसमें हजारो प्रिंट सम्बन्धी मिस्टेक को ठीक करवा कर लाइफ टाइम ऑनलाइन सिस्टम के करोड़ो राशनकार्ड तैयार किए। 2006 के बाद से नरेगा के जॉबकार्ड नही बने थे। वर्ष 2016 में हरेक जॉबकार्ड धारक के आधार, बैंक एकाउंट, फोन नम्बर युक्त करोड़ों लोगों को न्यू जॉबकार्ड जारी किए। सरकार की बहुउद्देश्यीय ओर बहुआयामी लोकप्रिय भामाशाह योजना के शिविर लगवाकर जनधन में बैंक खाते खुलवाकर करोड़ों भामाशाह कार्ड बनवाए। विभिन प्रकार की राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन एवम राजस्थान सरकार की विशेषयोग्यजन पेंशन धारकों को पीपीओ को आधार एवम बैंक खातों तथा फोन नम्बर डाटा अपडेटिंग की गई जिसमें लगभग 80 लाख लोगों को समय पर पेंशन मिलनी शुरू हुई। 2011 से अब तक जन्म मृत्यु ओर विवाह पंजीयन के करोड़ो पंजीकरण को ऑनलाइन अपडेट किए गए। प्रदेश में करोड़ो गेस कनेक्शन उज्ज्वला योजना के तहत एवम लाखो प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत डाटा अपडेटिंग व सेक्सन करवाकर पूर्ण करवाए।
महात्मा गांधी नरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने हेतु 2007-08 से अब तक निर्मित सभी करोड़ो निजी और सार्वजनिक परिसम्पत्ति के जियोटेगिंग किए गए।
सूची बहुत लंबी है काम निपटाने वाले मात्र 6000 ( 2018 में यह संख्या 9000 ) ग्रामविकास अधिकारी 1811 पंचायत प्रसार अधिकारी  295 विकास अधिकारी

अब हमारी खास समस्याएं क्या है

2006 में राजस्थान की लोकप्रिय मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पंचायत राज उत्थान के लिए बीडीओ जैसे महत्वपूर्ण पद पर अन्य विभागों के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हुए एक नए कैडर का गठन किया गया जो एसडीएम के समकक्ष अधिकारों से युक्त हो जिसको आरआरडीएस यानी राजस्थान रूरल डेवलपमेंट सर्विस नाम दिया गया।
राजस्थान लोकसेवा आयोग की भर्ती में चयनित अभ्यर्थियों को यह छूट दी हुई थी कि वो चाहे तो आरएएस बने चाहे तो आरआरडीएस बने
इस प्रकार से वर्ष 2006 से अब तक राजस्थान में 200 आरआरडीएस विकास अधिकारी बनकर विभाग के चहुमुखी विकास के भागीदार हैं। अभी भी 95 बीडीओ पोस्ट पर राजनेताओं के चहेते प्रतिनियुक्ति पर लगे हुए है।
अब दु:खद बात यह हैं कि 2006 में नियुक्त आरएएस तो उपखंड अधिकारी से एडीएम बन गए जबकि आरआरडीएस अभी भी बीडीओ हैं इनके प्रमोसन्न की कोई व्यवस्था नही हैं। पंचायत प्रसार अधिकारी की पांच वर्ष की सेवा के बाद में अतिरिक्त विकास अधिकारी पद पर प्रमोसन्न की व्यवस्था हैं।

वर्तमान में 2376 पद के मुकाबले 1811 पंचायत प्रसार अधिकारी नियोजित हैं में से 328 अतिरिक्त विकास अधिकारी पद 2013 से सृजित हैं। किन्तु अभी तक एक भी पीइओ का एबीडीओ पद पर प्रमोसन्न नही हुआ है। ग्रामविकास अधिकारी की 2016 में 3642 पदों पर भर्ती हुई थी मेसे 1062 पदों की वेटिंगलिस्ट चार माह पहले जारी होने के बावजूद जिले आवंटित नहीं हो रहे हैं। वर्ष 2013 से अब तक हर विभाग में प्रमोशन के लिए चार से पांच बार डीपीसी हो गयी हैं जबकि ग्रामविकास अधिकारी की पीइओ पद के लिए 5 साल में एकबार भी डीपीसी नही हुई हैं।

दूसरी समस्या यह है कि 1999 (बेसिक 3200) में नियुक्त ग्रामसेवक को 2008 में प्रथम एसीपी 5000 पर अर्थात नवीन वेतनमान 6 पे ग्रेड के अनुसार 3600 मिल गया किन्तु 2008 में नियुक्त 2400 पे ग्रेड को प्रथम एसीपी वर्ष 2017 में 2800 पे ग्रेड ही दिया गया जबकि अन्य बहुत से सँवर्ग जो हमारे साथ 3200 बेसिक पे स्केल पर थे उन्को 2013 में रिव्यू पे ग्रेड 2800 दे दिया ताकि 9 साल बाद स्वभाविक रूप से 3600 पे ग्रेड मिल जाए।

इन वाजिब मांगों पर एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि 9 बार लिखित समझौते के बावजूद सचिवालय के बड़े अधिकारी नित नए अड़ंगे डालकर फाइलों को टर्न डाउन कर देते हैं। छोटे से छोटे काम के लिए हर फाइल विधि विभाग, कार्मिक विभाग, वित्त विभाग की तीर्थ यात्रा पर अवश्य ही जाती हैं। आखिर में जब फाइल वित्त विभाग बोले या मुख्यमंत्री कार्यालय बोले वहां जाती हैं। अन्य विभागों के बड़े अधिकारी सिर्फ खुद के स्वार्थपूर्ण के अलावा कोई फाइल को मुख्यमंत्री कार्यालय भेजकर आ बैल मुझे मार वाली कहावत से बचने चाहते है। इसलिए वास्तविक और वाजिब आवाज मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच ही नही पाती हैं। आशा करते हैं अबकी बार हमारी आवाज निसंदेह मुख्यमंत्री कार्यालय तक अवश्य पहुँचेगी।

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