बीकानेर : आधी रात बाद से शहर पर रेत बरस रही है, रेगिस्तान हमारे थार का हो या कहीं ओर का, गर्मियों में रेत का इस तरह बरसना, वैसी ही प्राकृतिक घटनाा है जैैैसे पहाड़ी इलाकों में बर्फ गिरना। सुुुनते हैं बर्फ गिरने वहां के बाशिंदे वैसे ही परेशान होते हैं जैसे हमारे यहां की गृहिणियां और बाशिंदे। अंतर उस अतिरिक्त कमाई से होने वाले संतोष का ही है जो गिरती बर्फ देखने आए पर्यटकों के इलाके को हो जाती है।
लेकिन हमारे यहां इस रेत के बरसने का सुख लेने कोई नहीं आता, इसे हमें ही सहन करना होता है, रात लगभग दो बजे बाद से होले-होले बरस रही यह रेत मंद हवा के साथ पूरी तरह से बंद घरों के दरवाजों की झिरियों से घुसपैठ कर फर्श और घरेलू सामान की सतहों पर इस तरह पसरती जाती है जैसे उसका असल मुकाम वही है। कुछ गृहिणियां उसके थमने के इंतजार में चलताऊ सफाई मैं तो कुछ मुस्तैदी से लगी रहती है। यह सिलसिला रात सोने के अलावा कई बार तो चौबीस से छत्तीस-अड़तालीस घंटे तक चलता है।
रेत और उमस की जुगलबंदी
तेज आई आंधी तो घंटे-आध घंटे में जो करना-बिगाड़ना होता है, निपटा कर चली जाती है, ऐसी आंधियों के पीछे कई बार पानी भी आ लेता है और बरस कर आंधियों के अहसासों को धो जाता है। लेकिन यह जो बिना दस्तक के रेत होले-होले घंटों बरसती है, वह पारे को भले ही 2-3 डिग्री गिरा दे, लेकिन उमस के तौर पर उसकी कीमत भी वसूलती है। पिछले चौदह घंटों से ज्यादा समय से यह बीकानेर शहर ऐसी ही अनुभूतियों से गुजर रहा है।











