फसल अवशेष जलाना पर्यावरण और मानव जीवन के लिए चुनौती

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अक्सर दिल्ली सहित राजस्थान के श्रीगंगानगर, बीकानेर हनुमानगढ़ जिलों के वातावरण में एक अजब तरह की गर्द सी छा जाती है जो आम लोगोंं के जनजीवन को तो प्रभावित करती है वहींं दमा-अस्थमा रोगियों के लिए बेहद मुश्किलें पैदा कर देती है। दरअसल ये फसल अवशेष जलाने से पैदा होने वाला प्रदूषण है जो पंजाब में आमतौर पर होता है। आज चंडीगढ़ में इस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया), पंजाब और चंडीगढ़ द्वारा “स्टबल बर्निंग रोकथाम और समाधान” पर वन डे सेमिनार आयोजित किया गया था, जिसमें सभी संबंधित लोगों ने व्यापक रूप से भाग लिया था।

समारोह के उद्घाटन सत्र डॉ एसके पटनायक आईएएस, सचिव, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया । विश्वजीत खन्ना आईएएस, अतिरिक्त मुख्य सचिव, विभाग कृषि, पंजाब। डॉ अश्विनीकुमार, सरकार के संयुक्त सचिव, भारत कृषि और किसान कल्याण विभाग और केहान सिंह पन्नू आईएएस, सचिव, कृषि, पंजाब और अध्यक्ष पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने “अतिथि सम्मान” के रूप में भाग लिया। J.P.S. बिंद्रा, महाप्रबंधक, नाबार्ड, पंजाब क्षेत्रीय कार्यालय, चंडीगढ़ ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया।

एसके पटनायक सचिव कृषि / फार्मर वेलफेयर ने फसल अवशेष के लिए जमीन में दबाने की योजना के बारे में बताया। इस पर किसानों को उपलब्ध सब्सिडी की जानकारी भी दी । सेमिनार में 3 मुख्य उपायों पर चर्चा हुई हालांकि पैडी स्ट्रॉ को खेत में काटकर खेत की मिटटी में ही काट कर हल द्वारा वहीँ विछा दिया जाने को श्रेयस्कर बताया। कृषको में फसल के अवशेष को आग लगाने की प्रवृत्ति बढ़ी है हालांकि ये कृषकों के लिए भी नुकसानदायक है। इसलिए इस तरह के सेमिनारों से निकली बातें किसानों तक पहुँचे ये बेहद जरूरी है। इसका असर सैंकड़ो किलोमीटर तक पर्यावरण पर होता है जिससे उस राज्य के ही नहीं दूसरे राज्य के लोगो को भी नुकसान होता है।

 

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