पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम में जाने की सहमति दी है। कांग्रेस सहित कई अन्य नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई है।
संघ के विविध संगठन सभी विचारधाराओं से जुड़े लोगों को अपने कार्यक्रमों में बुलाते रहे है । दत्तोपंत ठेगड़ी द्वारा स्वदेशी जागरण मंच और अन्य संगठनों के कार्यक्रमों में निरन्तर समाजवादी नेताओं सहित कांग्रेसी और यहां तक कि वामपंथी नेताओं को बुलाया जाता रहा है। मैंने स्वयं एबीवीपी के कार्यक्रम के कांग्रेसी नेता सीपी जोशी को शिरकत करते देखा और सुना है।
विरोधी विचार के प्रति सम्मान और सहिष्णुता की संघ की यह अच्छी पहल है। अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठनों को भी न केवल इसका स्वागत करना चाहिए वरन सीखना भी चाहिए।
यह मुल्क एक विचार एक परिवार एक संस्कृति एक धर्म एक जाति का नहीं है , बहुलता में एकता इसकी तासीर है। सभी विचारों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता हमारा स्वभाव होना चाहिए।
गांधी ने अपने घोर वैचारिक विरोधी सावरकर से कभी संवाद खत्म नहीं किया, उनसे निरन्तर मिलना, पत्रचार करना जीवन भर चलता रहा। सावरकर द्वारा उत्तर न दिए जाने के बावजूद गांधी उन्हें पत्र लिखते रहे, यही सहिष्णुता भारतीयता का विचार व्यवहार है।
प्रणव दा की स्वीकृति पर आपत्ति जताने वाले इस तरह भी विचारें तथा विरोधी विचार के प्रति सहिष्णुता के भाव का सम्मान करें ।
सादर।
-सुरेन्द्रसिंह शेखावत
सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता











