”आज पैली तारीख है बेटा! आज तो म्हारै दवाई ल्यायो हुयसी। अरे! म्हारा पिराण निकळ जासी! दिनड़ो तो माछली दाई तडफ़तो-तडफ़तो काढ दियो-पण रात कियाँ कटसी?-अरे! हूं मर जासूं-म्हारी दवाई……” बूढे बाप रोवते थके कैयो! बो कांई जवाब दे? तिणखा मिली, पण घणखरी मांगणिया जमदूत बण’र लेग्या! घणी हाथाजोड़ी की, पण काम नीं बण्यो! कांई मूंढो दिखावै बाप नै? माथो झुका लियो, आपो झुका लियो। निजर उठाई तो सामैं खड़ी माँ! माँ सू आंख नई मिला सक्यों! क्यूं कै माँ री धोती, धोती कम कार्यां घणी ही! इणी हाडां गाळणी ठंड में भी माँ बिना ब्लाउज रैवती! पण दूजा सामीं बेटे री नाक राख्ण खातर कैवती कै कोट सूं म्हांरो जी फ ड़कै! बेटै तो गरम गाभा लायर राख्या है, पण हूं सूती कोट भी नई पैर सकूं। मरजाणो ओ दिल रो फड़को……।
आ सुण बेटे रै दिल रो फड़को उठ जावतो। बो गिलाणी अर इमरस सूं भर जावतो! आ भी कांई जिन्दगी है? इण सूं तो मर जावणो चोखो! पण न बो जी पारैयो हो, न बो पा रैयो हो। बो तो बस बंद मूंढे री भठी दाई, मांय-मांय भभक रैयो हो। माथो झुकायां बो आपरै कमरै मांय गयो। सामीं खड़ी मरी-मरी मुसी-मुसी उण री बऊ। भर जवानी में जूनी भींत सी जगां-जगां खजोड़ी, जगां-जगां तरेड़ा आयोड़ी, मरियोड़ो मन, सूखियोड़ो तन, बुझियोड़ी आंख्या। बो कांई करै? जिणनै सात फेरा री बखत दियोड़ा कवल पूरा करणां तो दूर, बो उणनै मन री ललक, तन री चमक, चैरै री हांसी अर होठां री मुळक भी दे सक्यो…….
बऊ बोली-”सुणो जी! छोरै ने खुलखुलियो हुयग्यो। खांसतो-खांसतो दोवड़ो हुय जाय। इणनै डाक्टर न देखाय दो-कठैई गड़बड़ नई हुय जाय।’ इतै में छोरो नै खासी आई बो लोट-पोट होरियो हो अर खाँसतो जा रैयो……खाँासतो जा रैयो हो….. पण-पण बो कांई कर सकै? कठै सूं लावै डाक्टर री फीस-कठै सूं लावै दवाई रा पईसा? उणनै लाग्यो-बो साचो बेटो कोनी, साचो पति कोनी, साचो बाप कोनी, साचो मिनख कोनी-कांई है बो?
बै सोच्यो इयां गाडा कियां गुड़कसी? इण नौकरी सूं काम नईं चालै। इण रिपिया सूं तो कीड़ी नीं छमकी जै। आखर घणो भटकयां पछै उणनै अेक प्राइवेट कॉलेज में पढावणै रो काम मिल्यो। दिनुगै अर रात रै काम रा पांच सौ रिपिया। कॉलेज रो प्रिसिंपल उणरी मजबूरी जाणतो। ईये वास्तै ज्यूं चावतो उणनै नचावतो। जणै चावतो बुलावतो, मरजी मरजी आवती जणै छोड़तो, बो मास्टर कम, बाबू गेटकीपर अर हामजी-फामजी घणो हो, प्रिंसिपल रो हाजरिया-चाकरियो बेसीहो! दूजा मास्टर मोकळा मोसा मारता, हँसी उडावता पण बो अे धमीड़ा अबोलो सुणतो रैवतो! मांय-मांय भुळसीजतो, पण करै कांई? बे खातर नौकरी जीवण सूं बेसी ही!
प्रिंसिपल उणरी आ मजबूरी पकड़ राखी। हर बार बो पाँच सौ रिपिया-तिणखा देय उणसूं डेढ हजार रिपिया री रसीद माथे दसखत करा लेवतो! बो उण री मजबूरी रो अणूतो फायदो उठावण लाग्ग्यो! इसा-इसा काम करावतो कै उणरी आतमा रोवण लाग जावती। एक-दो बार बो हेठा-नीचा काम करण सूं मना भी कियो तो प्रिंसिपल मूंढो फूलार कैयो-”म्हारै अठै तो बोई काम करसी जिको म्हारां गाया-गाया गासी। जै कोई नई गा सकै, तो ओ पड्यो रस्तो खुलो-जाओ। हूँ कैई नै जेवड़ा घालÓर तो बांध नी राख्यो।’ आ कैयर बो उण पासी कैरो-कैरो देख्यो। बो माथो झुका लियो। आ नौकरी-इज्जत ईमान सै सूं बेसी ही, बै खातर!
अबै मास्टरां साथै-साथै छोरा भी उणरी हंसी उडावण लागग्या। उणरी इज्जत दिनों-दिन घटती गी। बो आपरी निजरां मांय भी घटग्यो। घणी गिलाणी हुवती आप पर, पण कांई करै? अेक दिन घणो कायो हुयÓर प्रिंसिपल सूं कैयो-”म्हारै खनै दूजां मास्टरां दाई पढवालो , म्हासू पीर-बावर्ची, भिश्ती-खर, नीं बणीजै। दूजा मास्टर-म्हासूं तिगणी-चौगुणी तिणखा ले जावै अर पढाणै रै सिवा कीं काम नीं करै। अर हूं सगळा काम करू’र मिलै कांई पांच सौ रुपकड़ी? मनैं भी दूजां मास्टरां दाई…….’
”तूं दूजा री बात छोंड़’ बिचाळै प्रिंसीपल गरज्यो! तू थारै टाबर-टींगरा नै पाळ। दूजां नै देखÓर पेट ना दुखा। जै नईं चावै तो आ….. ‘बो मतलब समझग्यो। उणरी बोलती बन्ध हुयगी। मांय-मांय छटपटार रैयग्यो। बो दिनो-दिन मांय-मांय टूटतो जा रैयो हो।
अबै पिं्रसिपल और कड़ो पडग़यो। छूट्यां अर अदीतवार नै उण सूं पांच पांच छै-छै घंटा एक्सट्रा किलासां पढवावतो, पण देवतो कोनी फूटी कोडी क्यूंके बै खुद पैला कैयो के-म्हारै खनै दूजा मास्टरां दाई पढवालो। बो आपरै घरै बुलायर बाजार रा काम करा लेवतो। उणसूं फीस भेळी करावतो, जै कोई लड़ाई-दंगो हुवतो, तो उणनै भेजतो। गेट माथै रोज छोरां सूं माथा-पच्ची करतौ बो। एक-दो बार तो गुण्डा छोरा उण साथै मारा-पीटी भी करली। पण प्रिसिंपल मुसक्यो ई कोयनी। बो मांय-मांय ई घुट रैयो। कांई करै? नौकरी छूट जाय तो, उण रै परिवार रो कांई हुयसी? जैर रो गुटको गिट लैवतो! मांय-मांय एक अगन धधक री ही! काळजै रो रिगत पी री ही।
इत्ता घण्टा री नित मेहनत कदैई, नौकरी छूटणै रो भैसाण, मन माथै घणो दबाव र माथै में हर पल तणाव सूं अर मैनत, मुजब खाणो-पीवणो न मिलणै र घर रै गोधम सूं बो मांय रो मांय खजीतो जा रैयो हो उण री छाती में दरद रैवण लागग्यो-पण बो कैई नै कॉलेज में इण डर सूं कैवतो कोनी कै कठैई पिं्रसिपल उण नै निकाळ नीं देवै। जी रै ऊपरिया कर, सरीर रै भाठा भेळा मार गाडो गुड़कावतो जा रैयो हो।
हर महीनै बो फीस रा हजारूं रिपिया भेळा कर अर देवतो। अेक बार बेै बाप री घणी बीमारी रै कारण दवाई खातर थो़ एडवांस रिपिया मांग्या तो प्रिंसिपल कैयो म्हारै खनै कई’ पड्या है रिपिया? हूं तो आप उधार लेयÓर काम चला रैयो हूं। बै सोच्यो कितो कूडो, कितो स्वार्थी, कितो आछो है ओ? बैरो ओ रूप देखर प्रिंसिपल कैयो-”म्हनै थारो ओ सूजियोड़ो थोबड़ो चोखो नई लागै, जै नौकरी करणी है तो……….’
”कोनी करणी मनै इसी जलील नौकरी हूं तो जाऊँ” बै रींसा कळते कैयो। ”तू जावै, तो जा-पण हर महीनै रसीदी टिकट माथै थारा दसखत तो म्हां खनै रैसी। अरर तूं चौबीस घंटा रो सरकार नौकर हैं बस थारै अफसर कनै किणी सूं शिकायत करावणी पड़सी। बस, गई थारी नौकरी, जा निकळ जा। जाऽऽऽ” बै धक्को देय काढ दियो उणनै।
बोत गै’रो सदमो लाग्यो उणनै। ओ फळ मिले इतै बरसां री सेवा रो? बी बड़ग्यो उण रै मन में क सरकारी नौकरी अबै गई…… अबे गई। नौकरी गई तो उण रो परिवार…….? उणनै लाग्यो जणै उण रो घूंसलो तिणखो-तिणखो बिखरग्यो……उण रा बूढा माँ-बाप……उणरी बहू, बेटो…..छाती में जोरदार दरद उठ्यो-बो बेहोस हुयग्यो। उण रै हार्टअटैक रो जोरदार दौरो पड़ों रात-दिन छिण-छिण री घुटण सूं मन-माथै रै भारी बोझ सूं चिन्ता री चिंता सूं बो पैला ई झर-झर कंथा हुयोड़ो हो। हार्टअटैक रै पैलडै़ झटकै में ई सूळीजियोड़ी छात दाई ढैंग्यो। सांसां री जूनी सांकळ री कड़ी-कड़ी बिखरगी। कैद हंसो मुगत हुयग्यो।
कॉलेज रै प्रिंसिपल नै भी खबर पोंची। तो गरमायो कै साळै नै मरण नै पैली तारीख ई मिली कांई? थोड़ो ठै’र मरजावतो। फेर सोच्यो आ बात दूजानै बताऊँ कै नईं? इण महानगरी में कै’नै ठा पड़ै है? कैनै फुरसत है, दूजै री मौत री चिंता करण री। कुण कैरै मसाण जावै मसाण जावणै रैनामै सै छूटी मांगसीर मजा करसी? पण फेर कांई सोच र मास्टरां नै भेळा किया र मूँढो उतार र कैयो-”बापड़ा मास्टरजी चालता रैया, पतो नई हार्टअटैक किंया हुयग्यो। लाई रो घर उजड़ग्यो। घणे काळजो कुळै…..पण करां’परभु सामै जोर कोनी……घणो ई चावूं क दाग में जाऊँ-पण आज पै’ली तारीख है….फीसां जमा करणी है-घणी मजबूरी है छुट्टी भी नई कर सका। हाँ, थां मांय सूं अके आधो जावणो चावै तो……देखलो हूं दोर-काम काढ लेसूं। कांई करा पै’ली तारीख है।” कोई चिड़ी रो जायो नीं मुसक्यो।
सूनै हॉल रै भाठां टकरा-टकरा’र अवाज गूंज ही ”आज पैली तारीख है, आज पैली तारीख है।
लक्ष्मीनारायण रंगा, बीकानेर











