चंद्रमा के दर्शन कर कुछ घंटे बैठें चांदनी में
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा का बहुत है महत्व
शरद पूर्णिमा का धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बहुत महत्व है। आज शरद पूर्णिमा की विशेष रात है। भगवान श्रीकृष्ण को अति प्रिय इस रात को महारास की रात्रि भी कहा जाता है। धर्म वैज्ञानिकों के अनुसार सनातन धर्म में यूं तो हर पूर्णिमा को पूजनीय माना गया है लेकिन शरद पूर्णिमा की रात अपना विशेष स्थान रखती है। आज ही रात चंद्रमा की चांदनी में विशेष औषधिये गुणों की प्रचुरता होती है। इसलिए चावल की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है। जितनी अधिक देर तक खीर चांदनी में रहेगी उतने ही उमें अमृत्व के गुणों का वास होना माना गया है।
ये कहती हैं शरद पूर्णिमा के लिए धार्मिक मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा वर्षा ऋतु की गगन मलिनता की समाप्ति की प्रतीक है। सभी देवियों ने आश्विन शुक्ल पक्ष में दैत्यों का संहार करके शरद पूर्णिमा की निशा में भगवान शंकर के साथ कैलाश पर्वत पर दिव्य नृत्य किया था। इसी दिव्य नृत्य में भगवान शिव नटराज स्वरूप में नाचे थे। भगवान श्रीराम ने भी शरद पूर्णिमा की निर्मल चंद्रता युक्त परिपूर्ण रात्रि में शरदोत्सव मनाया था। इसी शरद पूर्णिमाा की निशा में परब्रह्म परमात्मा भगवान श्री कृष्ण ने योगी स्वरूप में अपनी गोपियों के साथ अखंड मंडल रास किया था। इस महारास में श्री कृष्ण वांसुरी की ध्वनि पर भगवान शिव ने चंद्रसखी के स्वरूप में नृत्य किया था। शरद पूर्णिमा के दिन सनातन धर्मावलंबी स्त्रियां अपने पति एवं परिवार की कामना पूर्ति के लिए भगवान को लड्डुओं और खीर का भोग लगाती हैं।
शरद पूर्णिमा पर खीर का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार चन्द्रमा को मन और औषधि का देवता माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात को चांद अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। इस दिन चांदनी रात में दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इससे विषाणु दूर रहते हैं। शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में खीर रखने का विधान है। खीर में मौजूद सभी सामग्री जैसे दूध, चीनी और चावल के कारक भी चन्द्रमा ही है। अत: इनमें चन्द्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है। शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे खीर
पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। प्राकृतिक चिकित्सालयों में तो इस खीर का सेवन कुछ औषधियां मिलाकर दमा के रोगियों को भी कराया जाता है। यह खीर पित्तशामक, शीतल, सात्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है।
www.newsfastweb.com