राजस्थानी भाषा को मिले मान्यता

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राजस्थानी भाषा
प्रेसवार्ता को सम्बोधित करते अ.भा.राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के पदाधिकारी।

भाजपा सरकार को साढ़े चार वर्ष पहले किए वादे की दिलाई याद

बीकानेर। राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर आन्दोलनरत राजस्थानी साहित्यकारों और भाषा प्रेमियों ने आज एक प्रेसवार्ता के माध्यम से राज्य सरकार को 2013 के घोषणा पत्र में किए गए मान्यता के वादे की याद दिलाई।

उन्होंने कहा लम्बे समय से चली आ रही इस मांग को सरकार जल्द पूरा करे।
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के बैनर तले आज  भाषा प्रेमियों ने कहा कि राजस्थानी भाषा आजादी से पहले उमरकोट (पाकिस्तान) की राज्यभाषा रही है।

वहीं राजस्थानी गीतों की भी पूरे विश्व में अलग पहचान है। राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवी अनुसूची में जोडऩे के लिए प्रदेश विधानसभा ने 2003 में सर्वसम्मति से संकल्प प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार के पास भेजा था लेकिन यह प्रस्ताव 15 वर्षों से लम्बित पड़ा है।

केन्द्र व राज्य सरकार ने राजस्थानी भाषा को अब तक मान्यता नहीं देकर जनभावनाओं व प्रदेश का अपमान किया है। समिति ने दूरदर्शन राजस्थान को दूरदर्शन राजस्थानी करने की मांग भी सरकार से की।

समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि बीकानेर के लोगों का भाषा की मान्यता के संघर्ष में विशेष योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार राजस्थानियों की अस्मिता से जुड़े इस मद्दे पर गम्भीरता से काम करते हुए इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़े, नहीं तो इस जनांदोलन को और तेज किया जाएगा।

इस अवसर पर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के उपाध्यक्ष डॉ. भरत ओला, प्रदेश महामंत्री मनोज कुमार स्वामी, साहित्यकार शंकर सिंह राजपुरोहित सहित कई भाषा प्रेमी मौजूद रहे।

 

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