टिकट दावेदारों से परेशान हुए पांडे-पायलट

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गहलोत सरकार

कार्यालय के चक्कर नहीं लगाने और फील्ड में काम करने के दिए निर्देश।

जयपुर/बीकानेर। भाजपा को पटखनी देने के लिए कमर कस चुकी कांग्रेस के घर की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। कांग्रेस की राहों में टिकट के दावेदार लगातार रोड़ा डाल रहे हैं।

दावेदारों के शक्ति प्रदर्शन से परेशान हो चुके पीसीसी चीफ सचिन पायलट और राजस्थान प्रभारी अविनाश पाण्डे ने दावेदारों से अपील की है कि ताकत दिखाने के बजाए काम करें और उन्हें भी काम करने दें।

चुनाव में हर विधानसभा सीट से 5 से 7 उम्मीदवार टिकट के लिए ताल ठोक रहे हैं। दावेदारों की ओर से लगातार दावेदारी पेश करने के चलते कांग्रेस के बड़े नेता चिंता में पड़ गए हैं।

पीसीसी कार्यालय पर पहुंच रहे दावेदार शक्ति प्रदर्शन कर दावेदारी को पुख्ता करने में जुटे हैं। वहीं, अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ बोलते हुए पार्टी को चुनावी फायदा और नुकसान बता रहे हैं। साथ ही कई दावेदार यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि गलत व्यक्ति को पार्टी ने टिकट दिया तो पार्टी अंजाम भुगतेगी। टिकट को लेकर दावेदारों की जयपुर से दिल्ली तक जारी भागदौड़ ने पार्टी पदाधिकारियों की नींद उड़ा दी है।

टिकट की दावेदारी से परेशान हो चुके पायलट और राजस्थान प्रभारी ने संयुक्त रूप से सभी से अपील की है। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि टिकट की दावेदारी के लिए शक्ति प्रदर्शन नहीं करें।

उन्होंने यह भी कहा, हम सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं। इसलिए शक्ति प्रदर्शन के बजाए शांतिपूर्वक अपनी बात कहें, जिससे सभी दावेदारों को आसानी से सुना जा सके।

उल्लेखनीय है कि प्रदेश के सभी विधानसभा सीट से बहुसंख्यक दावेदार होने के चलते कांग्रेस हाइकमान पहले से परेशान हैं। पार्टी की सबसे बड़ी चिंता सभी सीटों पर योग्य उम्मीदवारों के चयन के साथ ही दावेदारों को शांत रखने की है। टिकट के दावेदारों की ओर से शक्ति प्रदर्शन करने के साथ ही उनमें आपस में विवाद के कई मामले सामने आ चुके हैं।

कांग्रेस के मेरा बूथ मेरा गौरव अभियान के दौरान राज्य के कई जिलों में दावेदारों के बीच हाथापाई भी हो चुकी है। इसके बाद से पार्टी के बड़े नेताओं की चिंता बढ़ी हुई है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत, सचिन पायलट सहित कई बड़े नेता दावेदारों की समझाइश करते हुए बयान जारी कर चुके हैं। गहलोत पूर्व में एक कार्यक्रम के दौरान यह भी कह चुके हैं कि 1993 में इससे भी अच्छा माहौल था, लेकिन आपसी मतभेद के चलते चुनाव हार गए थे। गहलोत के इस सीख का भी दावेदारों पर ज्यादा असर होता दिखाई नहीं दे रहा है।

 

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