पहले बीजेपी और अब कांग्रेस सरकार कर रही अनदेखी
भ्रष्टाचार कर चांदी काट रहे हैं पीबीएम के चिकित्सक
बीकानेर। ऑपरेशन प्रिंस की रिपोर्ट में सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज और पीबीएम के 36 चिकित्सकों को नामजद करते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंषा सरकार से की गई, लेकिन न तो तत्कालीन भाजपा सरकार ने इस रिपोर्ट पर ध्यान दिया और न ही वर्तमान की कांग्रेस सरकार ने। नतीजा पीबीएम आज भी भ्रष्टाचार का बड़ा अड्डा बना हुआ है।
गौरतलब है कि वर्ष,2015-16 में तत्कालीन संभागीय आयुक्त सुबीर कुमार के निर्देशन में सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज और पीबीएम अस्पताल में चलाए गए ऑपरेशन प्रिंस के दौरान एसपीएमसी व पीबीएम के कई चिकित्सकों, नर्सिंगकर्मियों, लेखाकर्मी, फार्मासिस्ट व अन्य कर्मचारियों की शिकायतें आमजन सहित अन्य माध्यमों से प्रशासनिक अधिकारियों को मिली थीं। इन शिकायतों पर गंभीर चर्चा कर इन्हें सत्यापित करने के पश्चात सूचीबद्ध कर उचित कार्रवाई के लिए रिपोर्ट में संलग्न किया। साथ ही रिपोर्ट में अनुशंषा की गई कि विभाग इन दोषियों की जांच करके कार्रवाई करने के लिए प्रमाणित कर सकता है। दोषियों पर कार्रवाई करके उन्हें पीबीएम से हटाया जाना आमजन व खुद पीबीएम के लिए हितकर होगा। स्वयं भू बने बैठे इन चिकित्सकों पर कार्रवाई के पश्चात निश्चित ही पीबीएम के नवनिर्माण के द्वार खुलेंगे एवं नए युग का सूत्रपात होगा।
ऑपरेशन प्रिंस की रिपोर्ट में ये बताई गई है पीबीएम के वरिष्ठ चिकित्सकों की करतूत
पीबीएम के वरिष्ठ चिकित्सकों की करतूतों को ऑपरेशन प्रिंस की रिपोर्ट के जरिए सरकार के सामने लाने की कोशिश की गई। इसमें तीन दर्जन चिकित्सकों में से अधिकतर के बारे में कमीशनखोर, चापलूस व सिफारिशी, प्रतिभाहीन, मेडिकल स्टोर, पैथोलॉजी लैब व प्रोपेगंडा कम्पनीज से गठबंधन करने, निजी अस्पतालों में जाकर काम करने, पीबीएम व बाहर राजनैतिक गतिविधियों में लिप्त रहने, विभाग में आंतरिक राजनीति करने के बारे में स्पष्ट रूप से लिखा गया है। इतना ही नहीं कई वरिष्ठ चिकित्सकों को प्रशासकिय चिकित्सकों और जयपुर बैठे आला अधिकारी के चापलूस, सिफारिशी भी बताया गया है।
आचार्य तुलसी कैंसर अस्पताल के छह चिकित्सकों का नाम भ्रष्ट चिकित्सकों में शामिल
ऑपरेशन प्रिन्स की रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेज और पीबीएम के जिन 36 चिकित्सकों के नाम हैं, उनमें कार्डियोलॉजी, डेंटिस्ट्री, ईएनटी, गैस्ट्रोएन्ट्रोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, मेडिसिन, माइक्रोबायोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, गायनेकोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स, पीएसएम, साईट्रिक, रेडियो थैरेपी, सर्जरी, स्किन, रेडियो डाईग्नोसिस, टीबी एवं चेस्ट, यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख व प्रभावशाली चिकित्सक शामिल है लेकिन सबसे ज्यादा छह चिकित्सक आचार्य तुलसी कैंसर अस्पताल में कार्यरत हैं और रेडियो थैरेपी से जुड़े हैं।
इसके बाद मेडिसिन विभाग के पांच चिकित्सकों के नाम शामिल हैं। कैंसर अस्पताल और मेडिसिन विभाग के एक-एक चिकित्सक ने पीबीएम अस्पताल से किनारा कर लिया है और वे अपना अलग कार्य कर रहे हैं।
इन चिकित्सकों पर हैं भ्रष्टाचार के आरोप
तत्कालीन मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. आरए बंंब (सेवानिवृत हो चुके), डॉ. सीताराम गोठवाल (सेवानिवृत हो चुके), डॉ.पिन्टू नाहटा, डॉ. देवेंद्र अग्रवाल, डॉ. अभिषेक क्वात्रा, डॉ. जितेन्द्र आचार्य, डॉ. राजीवनारायण पुरोहित, डॉ. दीपचंद, डॉ. सुशील फलोदिया, डॉ. जितेन्द्र फलोदिया, डॉ. वीबी ङ्क्षसह (स्थानान्तरित हो चुके), डॉ. एलए गौरी, डॉ. बीके गुप्ता, डॉ. जेके मील, डॉ. मनोज मीणा, डॉ. अभिषेक बिन्नाणी, डॉ. दिनेश सोढ़ी, डॉ. सुदेश अग्रवाल, डॉ. संतोष खजोटिया, डॉ. बीएल खजोटिया, डॉ. बीएल चौपड़ा, डॉ. रामप्रकाश लोहिया, डॉ. केके वर्मा (स्थानान्तरित हो चुके), डॉ. एमआर बरडिय़ा, डॉ. एचएस कुमार, डॉ. सुरेन्द्र बेनीवाल, डॉ. संदीप गुप्ता, डॉ. राजेन्द्र बोथरा, डॉ. आरके काजला(स्थानान्तरित हो चुके), डॉ. जीएल मीणा (स्थानान्तरित हो चुके), डॉ. माणक गुजरानी, डॉ. मुकेश आर्य, डॉ. बीसी घीया, डॉ. दयाल शर्मा (पीबीएम छोड़ चुके), डॉ. जितेन्द्र नांगल (पीबीएम छोड़ चुके) के नाम ऑपरेशन प्रिंस की रिपोर्ट में शामिल कर सरकार के पास भेजे गए। सरकार अगर कार्रवाई करे तो सभी चिकित्सकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले बनते हैं।
आइएएस और आरएएस अधिकारियों की भी नहीं सुन रही सरकार
सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज और उससे संबद्ध पीबीएम अस्पताल की व्यवस्थाओं को सुधारने और वहां बड़े पैमाने पर किए जा रहे भ्रष्टाचार को खत्म करने के पवित्र उद्देश्य को लेकर तत्कालीन संभागीय आयुक्त सुबीर कुमार के निर्देश पर वहां ऑपरेशन प्रिंस चलाया गया था। ऑपरेशन प्रिंस चलाने वाली टीम में अतिरिक्त संभागीय आयुक्त डॉ. राकेश कुमार शर्मा, तत्कालीन जिला कलेक्टर पूनम, प्रशिक्षु आईएएस शुभम चौधरी शामिल थे, इनके सहयोगी के रूप में संभागीय आयुक्त कार्यालय के तीन वरिष्ठ और कर्मठ कर्मचारी रतनसिंह निर्वाण, योगेश सुथार व चेतन आचार्य शामिल थे। इन अधिकारियों और कर्मचारियों ने कई महीने की मेहनत और हजारों लोगों से चर्चा कर ऑपरेशन प्रिंस चलाया था और उसकी रिपोर्ट तत्कालीन वसुन्धरा राजे सरकार को भेजी थी लेकिन हैरानी की क सरकार ने अपने ही प्रशासनिक अधिकारियों की सिफारिश नहीं मानी। उससे भी ज्यादा हैरानी तो इस बात की है कि उसके बाद सत्ता में आई कांग्रेस की गहलोत सरकार भी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में आनाकानी कर रही है।
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