कामाख्या देवी के मंदिर में प्रसाद में मिलता है रक्त से भीगा हुआ कपड़ा

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कामाख्या

बहुत ही पवित्र और शक्ति का स्वरूप माना जाता है कपड़ा

असम के गुवाहाटी शहर के पास देवी सती का ये मंदिर 52 शक्ति पीठों में से एक है। कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर कामाख्या में है।

कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत पर स्थित है। मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर किसी को जाने की इज़ाजत नहीं, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं।

मंदिर का इतिहास

पुरानी कथाओं के अनुसार माता सती के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ किया। जिसमें देवी सती के पति भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। यह बात सती को बुरी लग गई और अपने पति का अपमान सह नहीं सकीं। इसके चलते नाराज होकर अग्निकुंड में कूदकर उन्होंने आत्मदाह कर लिया।

जिसके बाद शिवजी ने सती का शव उठा कर भयंकर तांडव किया, जिससे चारों ओर हाहाकार मच गया। इसे शांत कराने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के कई सारे टुकड़े कर दिए।

देवी के अंगों के ये टुकड़े अलग-अलग जगहों पर जा गिरे। जहां-जहां ये गिरे वो जगह शक्तिपीठ कहलाए। कामाख्या मंदिर में देवी सती की योनि और गर्भ गिरा थे, ऐसा कहा जाता है कि जून के महीने में इससे रक्त का प्रवाह होता है।

इस दौरान यहां ब्रह्मपुत्र नदी पूरी लाल हो जाती है। इस दौरान अम्बुवाची मेला चलता है। मंदिर में देवी की अनुमानित योनि के पास पंडित जी नया साफ. स्वच्छ कपड़ा रखते हैं।

जो मासिक धर्म के दौरान ‘खून’ से भीग जाता है। फिर यह कपड़ा भक्तों को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। मां के रज से भीगा कपड़ा प्रसाद में मिलना किस्मत वालों को नसीब होता है।

क्या है अंबुवाची पर्व

अंबुवाची पर्व का सीधा संबंध मां कामाख्या के प्रजनन धर्म से है। कहा जाता है कि इस पर्व के दौरान मां रजस्वला होती हैं। जिसमें मंदिर के पट तीन दिनों के लिए बंद रहते हैं।

चौथे दिन कपाट खुलने पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। मां के रज से भीग कपड़ा बहुत ही पवित्र और शक्ति का स्वरूप माना जाता है।

 

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