बीकानेर। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक 15 दिन की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है।
इस साल 24 से 8 अक्टूबर तक श्राद्धपक्ष रहेगा। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दिनों में हमारे पूर्वज जिनका देहान्त हो चुका है, वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और पृथ्वी लोक पर जीवित रहने वाले अपने परिजनों के तर्पण को स्वीकार करते हैं।
श्राद्ध किसे कहते हैं
श्राद्ध का मतलब श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करना। हिंदू शास्त्रों के अनुसार जिस किसी के परिजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।
कौन कहलाते हैं पितर
जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हो, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष, जिनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है।
पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है।
कब बनता है पितृपक्ष का योग
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष के 15 दिन पितरों को समर्पित होता है। शास्त्रों अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपक्ष की पूर्णिणा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं।
भाद्रपद पूर्णिमा को उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो। शास्त्रों मे कहा गया है साल के किसी भी पक्ष में, जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्धकर्म उसी तिथि को करना चाहिये।
तिथि जब याद ना हो
पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों में इसका भी निवारण बताया गया है।
शास्त्रों के अनुसार यदि किसी को अपने पितरों के देहावसान की तिथि मालूम नहीं है तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है। इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।
इसके अलावा यदि किसी की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। ऐसे ही पिता का अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है।