मुफ्त वादों की झड़ी : सत्ता पाने का अचूक फॉर्मूला है ‘रेवड़ी’

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Flurry of free promises: 'Rewdi' is the surefire formula to get power

प्रदेश में रिवाज बदलने की कोशिश में सीएम गहलोत

प्रोफेशनल रणनीतिकारों के सुझाव से बढ़ा ‘रेवड़ी’ बांटने का चलन

#KAMAL KANT SHARMA / BHAWANI JOSHI www.newsfastweb.com

बीकानेर। चुनावी वर्ष होने की वजह से इस वर्ष प्रदेश की गहलोत सरकार ने मुफ्त चुनावी वादों की झड़ी लगा दी है। स्वतंत्रता दिवस पर मुख्यमंत्री गहलोत ने 7 मुफ्त घोषणाएं अपने मंच से की। मुफ्त वादों की घोषणा पर राजनीति भी तेज होने लग गई है, क्योंकि कुछ महीने बाद प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं। जानकार लोग मुफ्त वादों की घोषणा को चुनावी हथियार के रूप में देख रहे हैं। पिछले 8 विधानसभा चुनाव में ‘रेवडिय़ों’ने जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाई है।


राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार राजस्थान में जनता एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा को शासन करने का अवसर देती देखी गई है। इस बार अशोक गहलोत सरकार रिवाज बदलने की कोशिशों में जुटी है। इसी के चलते सीएम गहलोत इस बार के चुनावी बजट में भी कई घोषणाएं कर चुके हैं। अभी स्वतंत्रता दिवस के दिन सीएम गहलोत करीब 42 मिनट तक बोले। उन्होंने इस दौरान सरकार के किए कामों के बारे में बताया। इस दौरान गहलोत मुफ्त वादों की घोषणा करने से भी नहीं चूके।

गहलोत का फोकस फ्री मोबाइल और निशुल्क राशन किट देने पर रहा। अपने भाषण में सीएम गहलोत ने महिला सशक्तिकरण और डिजिटल डिवाइड को कम करने के उद्देश्य से इन्दिरा गांधी स्मार्टफोन योजना के तहत एक करोड़ महिलाओं को स्मार्टफोन देने, 20 अगस्त से सभी 1 करोड़ महिलाओं को गारंटी कार्ड दिए जाने, जिससे वे आने वाले वक्त में सरकार से स्मार्टफोन आसानी से ले सकने, 33 लाख लोगों को निशुल्क राशन किट देने की घोषणा भी की थी। चुनावी साल में अशोक गहलोत ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को लेकर भी बड़ा ऐलान किया। गहलोत ने कहा कि दौसा, सवाई माधोपुर, करौली, भरतपुर और अलवर जिले के 53 बांधों को भरे जाने का एलान भी किया है, पहले 26 बांधों को भरने का प्रस्ताव था। इसके अलावा भी सीएम गहलोत ने कई घोषणाएं की।

विशेषज्ञों के अनुसार मुफ्त वादे चुनाव पर ऐसे डालते हैं असर

राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार कम मार्जिन वाले सीटों पर मुफ्त चुनावी वादे मास्टरस्ट्रोक का काम करता है। चुनाव में मुफ्त वादे पैसों से ज्यादा भावनाओं से जुड़ा हुआ होता है, इसलिए लोगों पर यह सीधा और तुरंत असर करता है। चुनाव के दौरान मुफ्त वादे की घोषणा सुनने के बाद आम लोगों के व्यवहार और उसके पैटर्न में बड़ा बदलाव होता है। आम जनता मुफ्त वादों की घोषणा सुन किसी एक पक्ष की ओर झुक जाते हैं। राजनीतिक दल अपने-अपने सुविधानुसार मुफ्त वादे करने से नहीं चूकना चाहते हैं।
देश में चुनाव के दौरान मुफ्त वादों की घोषणा पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जब से चुनाव में राजनीतिक दलों ने प्रोफेशनल रणनीतिकारों का सुझाव लेना शुरू किया है, तब से मुफ्त में बांटने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। इस पर रोक लगनी चाहिए।

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