हनुमान बेनीवाल जाट नेताओं से संपर्क साधने में जुटे
बीकानेर। दो साल पुराना भाजपा और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक (आरएलपी) का गठबंधन कुछ दिन पहले खत्म हो गया है। भाजपा जैसे बड़े दल का आरएलपी जैसी दो साल पुरानी पार्टी के साथ टूटे गठबंधन का असर फिलहाल तो नजर नहीं आ रहा लेकिन आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में गठबंधन टूटने का असर तय माना जा रहा है। आरएलपी के अध्यक्ष और सांसद हनुमान बेनीवाल का जाट बहुल नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर व बीकानेर जिलों में प्रभाव है।
राजनीति से जुड़े सूत्रों के अनुसार जाट समाज के युवाओं में पकड़ के बदौलत बेनीवाल ने पिछले विधानसभा चुनाव में तीन सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई थी। इसी ताकत के चलते लोकसभा चुनाव में भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी ने आरएलपी के साथ चुनावी गठबंधन किया, उसे एनडीए में शामिल किया। भाजपा ने नागौर सीट बेनीवाल के लिए छोड़ी, बदले में उन्होने आधा दर्जन जाट बहुल सीटों पर भाजपा का प्रचार किया था। इस गठबंधन का दोनों को ही फायदा हुआ लेकिन केंद्रीय कृषि कानून को लेकर किसान विशेषकर जाट वर्ग में फैल रही नाराजगी को भांपते हुए बेनीवाल ने पहले तो तीन संसदीय समितियों से इस्तीफा दिया और फिर एनडीए से अलग होने की घोषणा कर दी।
भाजपा ने भी उन्हे मनाने का प्रयास नहीं किया। बेनीवाल पिछले एक माह से लगातार अल्टीमेटम देकर भाजपा नेतृत्व को समय देते रहे कि वह उसे मनाए लेकिन भाजपा नेतृत्व ने इसे नजरअंदाज किया। भाजपा नेताओं का मानना है कि पिछले दिनों सम्पन्न हुए जिला परिषद चुनाव में आरएलपी अपने गढ़ नागौर में ही कोई खास सफलता हासिल नहीं कर सकी। स्थानीय निकाय चुनाव मे तो और भी बुरा हाल हुआ। इसी कारण भाजपा नेतृत्व ने उन्हे मनाया नहीं।
उधर, राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बेनीवाल के भाजपा से अलग होने का असर फिलहाल तो नजर नहीं आ रहा है और ना ही मोदी सरकार की सेहत पर इसका असर होने वाला है। लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जरूर हो सकता है। बेनीवाल जाट युवाओं पर अपने प्रभाव की बदौलत भाजपा व कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं। एनडीए से अलग होने के बाद बेनीवाल जिलावार जाट समाज में प्रभाव रखने वाले नेताओं से संपर्क साधने में जुटे हैं। ऐसे में अब देखना यह होगा कि राजनीति का यह ऊंट विधानसभा और लोकसभा चुनाव में किस तरफ बैठता है।
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