चुनाव के बीच ‘स्टेटस सिंबल की चाह’, जयपुर से दिल्ली तक दौड़ शुरू

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'Desire for status symbol' amid elections, race begins from Jaipur to Delhi

राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर भाजपा नेताओं, कार्यकर्ताओं में हलचल शुरू

विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जी तोड़ मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं में जगी उम्मीदें

बीकानेर। लोकसभा चुनाव को लेकर आदर्श आचार संहिता के कारण चार जून तक कामकाज बंद है लेकिन समय सीमा नजदीक आने के साथ ही भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं की उम्मीदें जगने लगी है। पहले विधानसभा चुनाव और अब लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए जी तोड़ मेहनत करने वालों को उम्मीद है कि आचार संहिता के बाद राजनीतिक नियुक्तियों में उनका नाम आ ही जाएगा।


राजनीतिक सूत्रों के अनुसार दावेदारों इसकी लॉबिंग के लिए जयपुर से दिल्ली तक भागदौड़ शुरू कर दी है। अब यह बात दूसरी है कि नतीजों के बाद राज्य सरकार राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर क्या निर्णय करती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देशभर में भले ही नेताओं के लिए अब लाल बत्ती का चलन समाप्त हो गया हो, लेकिन राजनीतिक नियुक्तियों में मंत्री स्तर का दर्जा हासिल करने के लिए बीजेपी नेता और कार्यकर्ता लग गए हैं। राजनीतिक नियुक्तियों में अब लाल बत्ती भले ही नहीं मिलती लेकिन स्टेटस सिम्बल को लेकर रूतबा जरूर रहता है। यही कारण है कि इन्हें हासिल करने के लिए पार्टी में प्रदेश से लेकर केंद्र स्तर पर जबरदस्त लॉबिंग होती है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भी करीब सात नेताओं को अलग-अलग बोर्ड में नियुक्तियां दी गई थी, उसके बाद आचार संहिता लग गई थी। ऐसे में नेताओं को उम्मीद है कि आचार संहिता खत्म होने के साथ ही उनकी आस भी पूरी होगी।


पार्टी सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव से पहले ही प्रमुख नेताओं को यह आश्वासन मिल चुका है कि यदि उनके विधानसभा क्षेत्र में पार्टी की अच्छी परफॉर्मेंस रही तो उनका सम्मान बरकरार रखा जाएगा। इसके साथ जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला और संगठन में अच्छा काम किया है उन्हें भी आश्वासन मिला हुआ है। प्रदेश में सौ से ज्यादा ऐसे नेता है जो राजनीतिक नियुक्तियों के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। हालांकि करीब तीन दर्जन के आसपास नामों की चर्चा बोर्ड-निगमों के लिए चल रही है। लॉबिंग के दौरान नेता अपना अपना रिपोर्टकार्ड लेकर नेताओं के पास जा रहे हैं। यह दूसरी बात है कि बड़े नेताओं को अभी उनकी बात सुनने की फुर्सत नहीं है।


इनमें से कुछ प्रमुख नेता वो भी है जिनको विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इसके साथ यह भी माना जा रहा है कुछ वर्तमान विधायक जो मंत्रिमंडल की जगह पाने से वंचित रह गए थे उन्हें बोर्ड-निगमों में नियुक्ति दी जा सकती है। साथ ही कुछ युवा चेहरों को भी राजनीतिक नियुक्तियों में अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। वहीं जातीय बोर्ड में भी समीकरण बिठाने का प्रयास हो रहा है।
राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में नेताओं की परफॉर्मेंस के आधार पर राजनीतिक नियुक्तियां करने की चर्चा चल रही है। करीब एक दर्जन नेताओं को बोर्ड एवं निगमों में चेयरमैन नियुक्त कर कैबिनेट और राज्य मंत्री स्तर का दर्जा दिया जाएगा। मुख्यमंत्री बनने के बाद भजनलाल शर्मा ने राजनीतिक नियुक्तियों के अभी तक ज्यादा नियुक्ति नहीं की है।

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