भाजपा और कांग्रेस, दोनों सरकारें नहीं चाहती पीबीएम का सुधार

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Both BJP and Congress governments do not want PBM reform

चार-पांच साल पहले चलाए गए ऑपरेशन प्रिंस की रिपोर्ट पर नहीं दिया गया ध्यान

आरएएस अफसर और अन्य काबिल अधिकारियों के साथ जनभावना को भी किया गया दरकिनार

बीकानेर। पीबीएम अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्थाओं को सुधारने और सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज में चल रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए न तो भाजपा सरकार ने कोई सकारात्मक कदम उठाया और न ही कांग्रेस सरकार ने। वर्ष, 2015-16 में मेडिकल कॉलेज और पीबीएम में चलाए गए ऑपरेशन प्रिंस की रिपोर्ट को भी इन दोनों राजनीतिक दलों की सरकारों ने दरकिनार कर दिया है।

गौरतलब है कि चार-पांच साल पहले संभागीय आयुक्त सुबीर कुमार के निर्देश पर अतिरिक्त संभागीय आयुक्त राकेश कुमार शर्मा ने कई प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ मिलकर पीबीएम अस्पताल और सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज में ऑपरेशन प्रिंस नाम से अभियान चलाया था। उस दौरान मेडिकल कॉलेज औैर पीबीएम अस्पताल की व्यवस्थाओं में काफी सुधार देखने को मिला था। हालांकि यह ऑपरेशन गैरशासकीय था और इसका उद्देश्य अस्पताल में व्यवस्थाएं सुचारू करना था, लेेकिन जनहित के इस कार्य पर भी न तो तत्कालीन वसुन्धरा राजे सरकार ने कोई ध्यान दिया और ना ही कांग्रेस की गहलोत सरकार ने।

ऑपरेशन प्रिंस रिपोर्ट में खुले थे भ्रष्टाचार के कई राज

प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों से बनी इस विशेष टीम ने ऑपरेशन प्रिंस की रिपोर्ट मेें कई चौंकाने वाले खुलासे किए थे। इस रिपोर्ट में सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज और पीबीएम के कई चिकित्सकों, नर्सिंगकर्मियों, लेखाकर्मियों, फार्मासिस्टों, सामान सप्लाई करने वाली कई फर्मों, निजी लैबों, निजी अस्पतालों में काम करने वाले सरकारी चिकित्सकों, लपकों, कथित समाजसेवकों सहित पीबीएम से जुड़े बहुत से लोगों को नामजद करते हुए, उनके द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचारों से सरकार और आमजन को अवगत कराया था, लेकिन हैरानी की बात यह है कि काबिल अफसरों और कर्मचारियों की रिपोर्ट भी सरकार के पास पहुंच कर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।

रिपोर्ट की प्रस्तावना में कई अहम बातें लिखकर अतिरिक्त संभागीय आयुक्त राकेश कुमार शर्मा ने तत्कालीन सरकार और आला प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान पीीबीएम अस्पताल में चल रही अव्यवस्थाओं की ओर दिलवाने की पूरी कोशिश की थी। इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में शुरू की चौथी लाइन में ही लिखा गया है कि ‘ इस बात में कोई संशय नहं है कि अस्पताल प्रशासन पीबीएम को सूचारू एवं व्यवस्थित रूप से चलाने की जिम्मेदारी को निभाने की दिशा में कुछ नहीं कर पा रहा है।’ इतना ही नहीं रिपोर्ट की प्रस्तावना में पीबीएम अस्पताल को बीमार, अव्यवस्थित, गैर पेशेवर, भीड़ भरा, गैर पारदर्शी, असुरक्षित, लापरवाह, वित्तीय अनियमितता, व धीमी गति वाला हॉस्पिटल माने जाना वाला बताया गया है।

भाजपा व कांग्रेस सरकारों ने क्यों नहीं लिया एक्शन

संभागीय आयुक्त, अतिरिक्त संभागीय आयुक्त, कलेक्टर व प्रशिक्षु आइपीएस जैसे आला अधिकारियों से बनी इस टीम के एक स्पेशल ऑपरेशन और उसकी रिपोर्ट पर पहले भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार और इसके बाद कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने कोई भी एक्शन क्यों नहीं लिया, इस बारे में कई तरह की बातें सामने आईं हैं। लोगों में चर्चा है कि बहुत से चिकिस्तकों को राजनैतिक दलों की सरपरस्ती हासिल है, चिकित्सा विश्वविद्यालय के आला अधिकारी पर देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल के शीर्षस्थ नेताओं का हाथ है, जिसकी वजह से उस रसूखदार अधिकारी के खिलाफ ना तो भाजपा सरकार और ना ही कांग्रेस सरकार कोई कार्रवाई कर सकती है। जयपुर बैठे इस रसूखदार चिकित्सक की चापलूसी करते हुए यहां चिकित्सक मेडिकल कॉलेज और पीबीएम अस्पताल में उसे और उसके चहेतों को लाभ पहुंचाने में लगे हैं। भ्रष्टाचार को मिटाने का दावा करने वाले नेताओं का चरित्र भी अब आमजन समझने लगा है।

#Kamal kant sharma/Bhawani joshi www.newsfastweb.com

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