अन्तरराष्ट्रीय सुर्खियां बने इस नर्सिंग अधिकारी के कार्य

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The work of this nursing officer made international headlines

टीम बना कर विश्व स्तर पर कर रहे हैं जरूरतमंदों की चिकित्सीय सेवा

ड्यूटी के साथ-साथ मानवसेवा को रहते हैं तत्पर

बीकानेर। अपने लिए तो हर कोई जीता है लेकिन दूसरों के लिए जीने वाले सदियों तक याद किए जाते हैं। दूसरों के लिए जीने वालों को हमेशा ही बेहतर इंसान का दर्जा दिया जाता है। कुछ इसी तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिशाल पेश कर रहे हैं पूर्व सैनिक और वर्तमान में पीबीएम ट्रोमा सेन्टर में नर्सिंग अधिकारी मेवा सिंह। जिन के कार्यों की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है।

समाजसेवा में अग्रणीय रहने वाले इस नर्सिंग अधिकारी का नाम भारत, एशिया व इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर, अंतराष्ट्रीय प्रेरक यूथ डेवलपमेंट में शामिल है। मेवासिंह का कहना है कि ‘सेव द ह्यूमैनिटी’ नाम से व्हाट्सएप्प पर ग्रुप बनाकर एक टीम की शुरुआत की गई है, जिसके माध्यम से असहायों एवं जरूरतमंदों के लिए कन्याकुमारी से लददाख और नागालैंड, सिक्किम से गुजरात तक पूरे भारत को एक साथ मिलकर काम कर रही है। वे कहते हैं कि हॉस्पिटल में मरीजों के साथ लगभग बूढ़े व्यक्ति आते हैं, वे कहते है कि हमारे में तो ब्लड है नहीं इसलिए हॉस्पिटल में मरीजों के साथ स्वस्थ जवान और शिक्षित ही ज्यादा से ज्यादा आये ताकि रक्तदान की समस्या को दूर किया जा सके।

देश में हर साल लगभग 1 करोड़ 40 लाख यूनिट रक्त की जरूरत

भारत में 1000 व्यक्तियों में से केवल 8 लोग ही रक्तदान करते है लेकिन 1 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान की भारत में आज के समय के अनुसार जरूरत है। यानी भारत में विभिन्न बीमारियों में हर साल लगभग 1 करोड़ 40 लाख यूनिट रक्त की जरूरत होती है लेकिन 1 करोड़ यूनिट रक्त ही हमारे रक्तदाता दे पाते है जबकि भारत विश्व में सबसे युवा देश है। इस 40 लाख यूनिट रक्त की कमी की पूर्ति नहीं होने के कारण लाखों लोग दम तोड़ देते हैं।

उन्होंने बताया कि रक्तदान करने से मौत का कोई कारण नहीं बनता है लेकिन अगर आप रक्तदान नहीं करते हो तो आपके शरीर में रक्त की अधिकता की वजह से कई बीमारियां उत्पन्न हो जाते है, जो मौत का जिम्मेवार है। उन्होंने कहा कि भारत के सभी राज्यों की टीम में आंध्रप्रदेश से वनिशा अक्का बहिन, अरुणाचल प्रदेश से डॉ. श्रीराम अन्नी, तिलिंग याम बहिन, आसाम से प्रोजनोदस बहिन व अताउर रहमान, बिहार से बमेन्द्र सिंह, ऋचा, अंकितासिंह चौहान, छत्तीसगढ़ से फनेन्द्र सिंह और वाशुदेव, गुजरात से महेंद्र जोशी, वैशाली पांडया, गोवा से डॉ. समीर, हरियाणा से डॉ. निकिता और नेहा रानी, हिमाचल प्रदेश से हरीश और पंकज, झारखंड से विवेक भाई, कर्नाटक से अक्षय कुमार, मध्यप्रदेश से डॉ. हिमांशु, मिज़ोरम से क्रिस्टोफर, मणिपुर से डॉ. रोहिन मिताई, परमेन्द्र, महाराष्ट्र से यशोदा सोलंकी, अजीत, नागालैंड से बहिन असिन टेप और आकवि, ओडिशा से राजेश, पंजाब से अंकुश छाबड़ा, राजस्थान से डॉ. मुकेश मीणा, रेखा बंसल, वर्तिका खंडेलवाल, महावीर मूर्तिकार, सिक्किम से कुलप्रकाश व शोभना महेश्वरी, तमिलनाडु से सांईं प्रसन्ना, तेलंगाना से ईश्वर गंजी, अनुराधा, उत्तराखंड से रोहित बाजवा, ऋषिकेश और डॉ. अनिल जोशी, उत्तर प्रदेश से विक्रम भाई व आशीष मिश्रा, पश्चिम बंगाल से नंदलाल अग्रवाल, केरल से अमर और पद्मनाभन, मेघालय से ताराप्रसाद, त्रिपुरा से केशव रॉय का साथ सराहनीय है।

वहीं केन्द्र शासित प्रदेश की टीम में अंडमान निकोबार से डॉ. सुरेश, मोहम्मद सुलेमान और अजय भाई, चंडीगढ़ से बहिन सोनाली, दिल्ली से डॉ. तेजप्रकाश, दमन दीव से सावंत राव, दादर एंड नगर हवेली से धर्मेंद्र, जम्मू-कश्मीर से ज़मीर मोहम्मद, लददाख से मोहम्मद फिरोज, लक्षद्वीप से मोहम्मद फकरुल और मोहम्मद सलीम का सहयोग हमेशा बना रहता है।

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