महामारी में सामने आया चिकित्सकों और फार्मा का गठजोड़, पढ़ें पूरी खबर…

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Alliances of doctors and pharma surfaced in pandemic, read full news ...

बहुत पहले से चल रही है इस प्रकार की मिलीभगत

दवाई, जांच, प्राइवेट अस्पताल में काम आदि मामले पहले भी आ चुके हैं सामने

‘ऑपरेशन प्रिंस’ की रिपोर्ट में हुआ था खुलासा

बीकानेर। कोरोना महामारी में यह जगजाहिर हो गया है कि चिकित्सकों और फार्मा का गठजोड़ कितना मजबूत है। यह गठजोड़ करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे करता है। रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने के मामले में तो सिर्फ पांच फार्मा, कुछ निजी अस्पताल और कुछ दर्जन चिकित्सकों के नाम ही सामने आए हैं। अगर इस गठजोड़ की तह तक जाया जाए तो काफी चौंकाने वाले नतीजे सामने आ सकते हैं।

रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वाले तीन रसूखदार मित्तल फार्मा व मित्तल ड्रग के विनय मित्तल, अनुज मित्तल और प्रदीप मित्तल अभी एसओजी की गिरफ्त में हैं, जिनसे पूछताछ की जा रही है। जिस दिन से ये गिरफ्तार किए गए हैं, उस दिन से ही इस मामले को कमजोर करने के लिए राजनेताओं का दबाव सामने आने लगा।
महामारी में रेमडेसिविर इंजेक्शन की खपत ने ही इसे नायाब और कमाई देने वाला सामान बना दिया लेकिन कोरोना काल से पहले के समय में जाकर देखें तो चिकित्सकों और फार्मा के गठजोड़ के साथ पैथोलॉजी लैब का गठबंधन भी सामने आ जाता है।

वहीं निजी अस्पतालों में पहुंचे रोगियों को लूटने के कारोबार की जानकारी भी मिल जाती है। कोरोना काल से पहले वाले समय में ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलते हैं जिसमें चिकित्सकों, फार्मा, ड्रग एजेन्सियों व पैथोलॉजी लैब संचालकों की मिलीभगत से मरीजों को लूटने का खेल उजागर हुआ है। बीकानेर में अतिरिक्त संभागीय आयुक्त पद पर तैनात राकेश शर्मा ने पीबीएम अस्प्ताल में ‘ऑपरेशन प्रिंस’ नामक अभियान चलाकर पीबीएम और मेडिकल कॉलेज में व्याप्त अव्यवस्थाओं और भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश की थी। उस दौरान उन्होंने ‘ऑपरेशन प्रिंस’ की रिपोर्ट तैयार कर सरकार को भेजी थी। हैरानी की बात यह है कि महामारी में जागृत होने वाली सरकार ने उस समय इस रिपोर्ट पर जरा भी गौर करने की जहमत नहीं उठाई थी। अगर उस दौरान ही इस रिपोर्ट पर संज्ञान ले लिया होता तो आज हालात कुछ और ही होते।

रेमडेसिविर की कालाबाजारी में सरकारी नुमाइंदों पर भी लग रहे दाग
कोरोना महामारी में जब रेमडेसिविर इंजेक्शन की जीवनरक्षक दवाई के रूप में मांग बढऩे लगी थी और फार्मा व ड्रग एजेन्सियों ने इस दवाई के ऑर्डर कंपनियों को दिए थे तब औषधि नियंत्रण विभाग के अधिकारी कहां थेï? उन्होंने फार्मा व ड्रग एजेन्सियों के यहां पहुंच कर भौतिक निरीक्षण, स्टॉक की जानकारी आदि लेने की कोशिश क्यों नहीं की। सरकार और उसके नुमाइंदों की शिथिलता और बेपरवाही की वजह से ही इन अवसरवादी फार्मा व ड्रग एजेन्सी संचालकों को रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने का मौका मिल गया। यही वजह है कि एसओजी की जांच में फार्मासिस्ट्स और औषधि नियंत्रक के रिकॉर्ड में भारी अंतर सामने आया है।

#Kamal kant sharma/Bhawani joshi www.newsfastweb.com

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