इस काले कारोबार के बड़े मगरमच्छ अभी पकड़ से हैं बाहर
चांदी काट रहे हैं निजी अस्पताल और ड्रग एजेन्सी मालिक
बीकानेर। रेमडेसिविर इंजेक्शन की अवैध बिक्री के मामले में पुलिस के हत्थे चढ़े चारों युवक इस काले कारोबार की छोटी मछलियां ही हैं, जबकि इस कालाबाजारी के बड़े मगरमच्छ पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। फिलहाल दस मई तक इन चारों आरोपियों से पुलिस पूछताछ करेगी, इसके बाद ही पता लग सकेगा कि रेमडेसिविर की काला बाजारी करने वाले बड़े मगरमच्छों तक पुलिस के हाथ पहुंच पाते है या नहीं।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रेमडेसिविर इंजेक्शन की अवैध बिक्री करवाने मेें ड्रग एजेन्सियों की प्रमुख भूमिका है। ड्रग एजेन्सियां अन्य मेडिकल स्टोर के नाम से बिल बना कर रेमडेसिविर इंजेक्शन को निजी अस्पतालों को दे देते हैं। इन निजी अस्पतालों में 15 से 20 हजार रुपए तक वसूल करने के बाद कोविड रोगी को ये इंजेक्शन लगा दिया जाता है।
यहां हैरत की बात तो यह है कि कोविड रोगी को रेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत है या नहीं, ये बिल्कुल भी मायने नहीं रखता है। सामान्य गंभीर कोविड रोगी को देखते ही इन निजी अस्पतालों में रेमडे सिविर इंजेक्शन लगाने की जरूरत जबरन बता दी जाती है। शुरू में तो रोगी के परिजनों को ही कह दिया जाता है कि वे स्वयं इस इंजेक्शन की व्यवस्था करें, जब वे व्यवस्था नहीं कर पाते हैं तो निजी अस्पतालों के संचालक उन्हें व्यवस्था करवाने का कह मनमाने रुपए ऐंठ लेते हैं।
सूत्रों के अनुसार बीकानेर में एक दर्जन के करीब ऐसी ड्रग एजेन्सियां हैं जो रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी से जुड़ी हुई हैं। इन ड्रग एजेेन्सियों ने कई गुना कीमत मेें यहां से श्रीगंगानगर, नागौर सहित अन्य कई जिलों में रेमडेसिविर इंजेक्शन निजी अस्पतालों में भिजवाएं हैं। कुल मिला कर रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने मेें मुख्य रूप से ड्रग एजेन्सियां ही महत्वपूर्ण रोल अदा कर रही हैं। महामारी मेें मजबूरी का फायदा उठाने वाले ऐसे ड्रग एजेन्सी मालिकों और निजी अस्पताल संचालकों के खिलाफ प्रशासन को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
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