कर्मचारियों के गले की फांस बन सकती है हड़ताल

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आचार संहिता लगने तक टरकाने की कोशिश, सरकार मांगें मानने को तैयार नहीं।

बीकानेर। चुनावी साल में कर्मचारियों ने मोर्चा खोल कर सरकार की परेशानियां बढ़ा दी है। विभिन्न विभागों के अधिकारी और कर्मचारी अपनी-अपनी यूनियनों के आह्वान पर सामूहिक अवकाश लेकर हड़ताल पर चले गए हैं।

हड़ताल के चलते हालात ये हो गए हैं कि कई ऑफिसों में कर्मचारियों ने ताले जड़ कर चाबियां सरकार को दे दी गई हैं। रोजाना रैलियां निकालकर, धरने देकर व प्रदर्शन कर विरोध जताया जा रहा है।

दफ्तरों में फाइलें नहीं चलने से कोई भी काम नहीं हो पा रहा है। दूरदराज इलाकों से सरकारी कार्यालयों में पहुंचने वाले आम लोगों को भी इन दिनों निराश होकर लौटना पड़ रहा है। हड़ताल का असर अब शासन-प्रशासन पर दिखने लगा है।

जिला मुख्यालयों पर रोजाना विभिन्न कर्मचारी संगठनों की ओर से नये-नये तरीकों से विरोध किया जा रहा है। अधिकारी और कर्मचारियों द्वारा सरकार को उसके चुनावी घोषणा पत्र की याद दिलवाते हुए चेतावनी दी जा रही है कि वादों को तत्काल पूरा नहीं किया तो बेमियादी हड़ताल लगातार रहेगी।

गले की फांस न बन जाए

इस चुनावी वर्ष में लम्बी चलने वाली ये हड़ताल अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए कहीं गले की फांस न बन जाए। क्योंकि अभी तक कुछ विभागों की गिनी-चुनी शर्तों को मानने के सिवाय सरकार किसी भी विभाग की पूरी शर्तों पर गंभीर नहीं है।

वर्तमान में हालात ऐसे बन रहे हैं कि किसी भी समय चुनाव आचार संहिता लागू हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो इस हड़ताली युद्ध में न किसी की हार होगी और न ही किसी की जीत। बशर्ते अधिकारियों और कर्मचारियों को काम पर वापस आना पड़ेगा।

चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद राज्यपाल की शक्तियां अस्तित्व में आ जाएंगी। उस समय इन अधिकारियों और कर्मचारियों की मान-मनुहार करने वाला कोई नहीं होगा। न ही कोई इन्हें ज्यूस पिलाएगा और न ही कोई इन्हें धरने से उठाएगा। इस तरह से किसी न किसी तरीके से यह हड़ताल कर्मचारी वर्ग पर ही आ पड़ेगी।

कर्मचारी काम नहीं करके जरूर सरकार के प्रति अपना विरोध व्यक्त कर सकते हैं लेकिन वे भी लम्बे समय तक खाली नहीं बैठ सकते हैं। इतना जरूर है कि अधिकारी और कर्मचारी अपना मत देते समय सरकार के प्रति अपना आक्रोश चुनाव परिणामों में दर्शा सकते हैं।

 

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