कोविड जांच रिपोर्ट पॉजीटिव आने के तीन दिनों बाद तक किसी ने नहीं ली सुध
लोकसेवकों की कार्यशैली पर सवाल, लोगों में प्रशासन के प्रति आक्रोश
बीकानेर। कोरोना महामारी के चलते पूरी दुनिया परेशान हैं। इस महामारी से निपटने के लिए देश में भी अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन बीकानेर के प्रशासनिक अधिकारी इस आपदा के दौरान भी अपनी लापरवाही की आदत नहीं छोड़ रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जिले के मुखिया भी जब जिम्मेदार नागरिकों की अनदेखी करने लगे तो आमजन में प्रशासन के प्रति नकारात्मकता ही उत्पन्न होती है।
प्रशासनिक अधिकारियों की ऐसी ही जानलेवा लापरवाही अभी हाल ही में बार एसोसिएशन बीकानेर के अध्यक्ष एडवोकेट अजय पुरोहित के साथ की गई है। महामारी के चरम पर पहुंचने के दौरान जिले के जिम्मेदार सरकारी नुमाइन्दों की इस लापरवाही को जगजाहिर करते हुए बार एसोसिएशन अध्यक्ष एडवोकेट अजय पुरोहित ने जिलाधीश के नाम खुला पत्र लिख कर सरकारी तंत्र की पोल खोली है।
ये है बार एसोसिएशन अध्यक्ष का खुला पत्र :-
जिला प्रशासन/श्रीमान जिलाधीश महोदय को खुला पत्र
यह पत्र बिना किसी दुर्भावना से समाज व प्रशासन को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने के उद्देश्य से लिखा जा रहा हैं
मैं, अजय कुमार पुरोहित, बार अध्यक्ष बीकानेर में पुलिस लाइन के पास 26, अमर सिंह पुरा, सिटी डिस्पेंसरी नं. 4 के पास मय परिवार निवास करता हूं।
यह पत्र बीकानेर में फैली कोविड-19 के अनियंत्रित चलते दौर में प्रशासन की अनदेखी, लापरवाही व असुनवाई से संबंधित हैं।
मेरे को 23 अक्टूबर की शाम को जुकाम की शिकायत हुई तो 24 अक्टूबर को 4 नं. डिस्पेंसरी मेरे छोटे भाई को भेजा तो मालूम हुआ कि 24 तारीख को वहाँ छुट्टी हैं, तो टेस्ट नहीं होगा। 24 तारीख को ही जुखाम के साथ बुखार हो गया, तो 25 तारीख की सुबह डिस्पेंसरी में जाने पर रविवार व दशहरा की छुट्टी के आधार पर मना कर दिया गया, साथ ही वहां यह भी इतला दे दी गयी कि यहां 26 तारीख को भी कोविड टेस्ट नहीं होगा, आप कहीं और टेस्ट करवा लेना। जिसपर 26 तारीख को 3 नं. डिस्पेंसरी में टेस्ट करवाने गए तो वहां पर मौजूद स्टाफ ने पहले तो साफ मना कर दिया कि यहां डॉक्टर साहब का ट्रांसफर हो गया हैं, यहाँ टेस्ट नहीं होगा। इसके बावजूद अन्य स्टाफ के सदस्य के सहयोग से टेस्ट किया गया जो 26 तारीख की सूची में शामिल होने के बाद, टेस्ट के आई डी का मैसेज 26 को मोबाइ फोन पर आ गया।
27 अक्टूबर को दोपहर बाद जारी की गई 121 कि पॉजीटिव सूची में मेरे सहित मेरे परिवार के 5 सदस्यों का नाम आ गया। मेरी उम्र जहां 65 से अधिक व भतीजी की उम्र 10 वर्ष होने से मेरे परिवार वाले कुछ ज्यादा ही डरे, सहमे हुए थे। उनके दिमाग में पूर्व की भांति किसी डॉक्टर का फोन आएगा, एम्बुलेंस के साथ पुलिस आएगी, मुझे व बच्ची को हॉस्पिटल भेजेंगे, ऐसे में सब घर बैठे इंतजार करते रहे।
27 तारीख की रात को 10 बजे तक इंतजार करने के बाद हम सो गये, मगर रात को जैसे ही कोई तेज हॉर्न बजता तो यही लगता कि कोई लेने आ गया। इसी सोच विचारी में अगला दिन यानी 28 अक्टूबर का भी पूरा दिन निकल गया परंतु कोई नहीं आया।
आखिर 28 तारीख को जिला कलेक्टर साहब को कई बार फोन किया पर फोन नहीं उठाया गया, कई मीडिया वालों से भी बात की, कोर्ट के न्यायिक अधिकारियों व अधिवक्ताओं से भी बात की, जिससे उनमें भी गुस्सा व रोष था।
आखिर में रात्रि को सीएमएचओ डॉ. बीएल मीणा साहब से बात हुईं, उन्होंने स्थिति को समझ कर कहा कि ज्यादा जरूरत हो तो अभी आदमी भेज दूं। मैने उनसे कहा कि ऐसी आपातस्थिति नहीं है अत: ऐसे में आप उन्हें सुबह भेज दें। परंतु 29 को भी इंतजार करते रहे, कोई नहीं आया और बीकानेर जिलाधीश महोदय को 8-10 बार फोन किया, फोन उठाया तक नहीं, जबकि फोन चालू था, समय-समय पर अन्य लोगों पर बातें भी हो रही थी। फिर हार कर वापस से सीएमएचओ साहब को फोन किया, पुन: स्थिति से अवगत कराया तो उन्होंने कहा कि सुबह तक पहुंच जाएगा।
मेरे अन्य मिलने वालों व रिश्तेदारों ने डिस्पेंसरी पर फोन किया तो ज्ञात हुआ कि उनके स्टाफ ने कहा है कि उनके पास आई सूची में आप लोगों के नाम नहीं हैं।
30 अक्टूबर को भी सुबह डिस्पेंसरी से बताए गएअनुसार किसी के नहीं आने पर पुन: सीएमएचओ साहब को फोन किया व सूची में नाम होना बताया और एक सूची डिस्पेंसरी भी भिजवाई। करीब 30 तारीख की सुबह 11.30 -12 बजे डिस्पेंसरी के 2 कंपाउंडर आए, डॉक्टर कोई उनके साथ नहीं आया। आने के बाद उन्होंने अपनी गलती मानी और यह गलती दुर्भावना से नहीं की गयी होनी प्रतीत हुई, ऐसे में मैंने उनको मेरी तरफ से माफ कर दिया।
श्रीमान जी, मैं आपसे कम से कम 4-5 बार वकीलों के डेलिगेशन के साथ मिला हूं, आपका व्यवहार भी हमारे प्रति हमेशा सम्मानजनक रहा है और हम अपने दिल और दिमाग में आपकी एक अच्छे जिलाधीश की मूर्त सजाए हुए थे, उसे खंडित होते देख ज्यादा दुख हुआ।
यहां मुद्दा इस महामारी के संक्रमण के अनियंत्रित दौर में 65 वर्ष से अधिक के मरीज, 10 वर्षीय बच्ची व उनके परिवार के अन्य सदस्य यानी पूरा परिवार पॉजीटिव, ऐसी स्थिति में किसी डॉक्टर की कोई एडवाइज नहीं, कोई फोन नहीं, प्रशासन की ओर से कोई सुनवाई नहीं।
हालांकि 30 तारीख के अखबार में ही जिलाधीश महोदय की खूब तस्वीरें छपी हुई थीं व जिलाधीश महोदय का पूरा दिन कोरोना को समर्पित जैसी खबरें छपी थीं, ऐसे मीडिया पर भी………..
श्रीमान जिलाधीश जी आप चंद व्यापारियों, चंद नेताओं, चंद निम्न अधिकारियों व रसूख वाले लोगों के ही जिलाधीश नहीं हैं। आप पूरे बीकानेर की जनता के साथ-साथ गरीबों व मजदूरों के भी जिलाधीश हैं। आप बड़े अधिकारी बनते ही यह क्यों भूल जाते हैं कि आप अधिकारी होने के साथ-साथ एक पब्लिक सर्वेंट हैं और हम पब्लिक हैं।
पिछले 3-4 दिनों से बार-बार आपको फोन पर, आपका फोन चालू होने के बावजूद आप मेरा फोन नहीं उठा रहे हैं, इसका कोई विशेष कारण हो तो बतावें। आप पब्लिक सर्वेंट हैं आपको पब्लिक का फोन उठाना चाहिये, आप उनके संरक्षक हैं। इस पूरे क्रम में सिर्फ आपके द्वारा ऐसी स्थिति में भी फोन नहीं उठाना निंदनीय हैं व अशोभनीय हैं तथा जिसे किसी भी रूप में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता और यह एक अच्छे जिलाधीश की निशानी भी नहीं हैं। मेरे यह वक्त तो आपके फोन उठाए बिना भी चल गया, मगर किसी गरीब का फोन उठा लेना वरना उसकी हाय बड़ी बुरी लगती हैं साहब।
आदर सहित
बार अध्यक्ष
अजय कुमार पुरोहित
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