भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है जो कि इस बार 3 सितंबर को यानी आज है, यह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण की 5245वीं जयंती है।
भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का एक अवतार माना जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात 12 बजे भगवान का श्रीकृष्ण का संकेतिक रूप से जन्म होने पर व्रत का परायण किया जाता है। बहुत से लोग मथुरा जाकर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि का दर्शन करते हैं। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरा हैं।
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जात है। स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें।
भविष्य पुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो ‘जयंती’ नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए।
विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नामवाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है। वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।
विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्तिहटती है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे। व्रजमण्डल में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
भगवान के श्रीविग्रहपर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासीउसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्ययंत्रोंसे मंगलध्वनिबजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है।