डीपफेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर बनाए जा रहे राजनेताओं के वीडियो
राजनीतिक दलों को मिल गया नया हथियार, चुनाव आयोग ने डीपफेक से निपटने के लिए बनाई योजना
बीकानेर। चुनाव में प्रचार के लिए राजनीतिक दल लगातार रैलियां और जनसभाएं कर रहे हैं। अब उन्हें एक नया हथियार भी मिल गया है। ये हथियार है -आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक दल एआई की मदद से बने फोटो और वीडियो शेयर कर रहे हैं। इनका मकसद अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की तारीफ करना, विरोधियों का मजाक उड़ाना या वोटरों तक सीधे मैसेज पहुंचाना हो सकता है।
साइबर विशेषज्ञों के अनुसार चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस समेत लगभग हर राजनीतिक दल ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर कम से कम चार बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए बनी हुई फोटो या वीडियो शेयर की है। न्यूजफास्ट वेब इन बदले हुए फोटो या वीडियो को आम बोलचाल में ‘डीपफेक’ कहा जाता है।
एआई की मदद से किसी भी नेता की हूबहू आवाज की नकल की जा सकती है, ऐसे में नेता चुनाव में वोटर्स को रिझाने के लिए वॉइस क्लोनिंग टूल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। न्यूजफास्ट वेब अभी तक चुनाव के वक्त रिकॉर्डेड मैसेज वाले फोन आते थे, जिनमें कोई नेता वोट मांगता था। न्यूजफास्ट वेब ये सब जानते हैं। लेकिन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से कॉल की शुरुआत में ही आपका सीधे नाम लेकर भी संबोधित किया जा सकता है। ये चुनाव प्रचार को और ज्यादा निजी बना सकता है। न्यूजफास्ट वेब साइबर एक्सपर्ट के अनुसार आने वाले समय में डीपफेक एक बड़ी समस्या बन सकता है। इसलिए जरूरी है कि हम सोशल मीडिया पर देखी जाने वाली हर पोस्ट पर तुरंत भरोसा न करें। पहले जानकारी को अच्छी तरह से परखें, उसके बाद ही भरोसा करें।
चुनाव आयोग के सामने डीपफेक की चुनौती
जानकारी के अनुसार डीपफेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके बनाई गई फर्जी खबरों को पहचानना बहुत मुश्किल है। आयोग के पास डीपफेक टेक्नोलॉजी से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन न हो।
हालांकि इस साल लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग हजारों संवेदनशील मतदान केंद्रों पर होने वाली गड़बडिय़ों को पकडऩे के लिए एआई टूल का इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है। न्यूजफास्ट वेब पोलिंग बूथ पर अगर कोई गड़बड़ी होती है, जैसे मतदान अधिकारियों की गैर-मौजूदगी या लिमिट से ज्यादा लोगों की मौजूदगी, तो ये एआई टूल तुरंत चुनाव आयोग को खबर कर देंगे।
दुनिया के टॉप सिक्योरिटी एक्सपट्र्स भी जाहिर कर चुके हैं चिंता
26 सिक्योरिटी एक्सपट्र्स ने मिलकर बीते साल एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें उन्होंने अगले दस सालों में एआई से होने वाले संभावित दुष्प्रचार को लेकर चेतावनी दी है। न्यूजफास्ट वेब उनका कहना था कि वॉइस क्लोनिंग और डीपफेक टूल से बनाए गए फोटो वीडियो का इस्तेमाल चुनाव में मतदाताओं की राय बदलने के लिए किया जा सकता है। सोशल मीडिया और खबरों में फर्जी जानकारी फैलाने वाले ‘बॉट्स’ चुनाव को भी प्रभावित कर सकते हैं।
#KAMAL KANT SHARMA / BHAWANI JOSHI www.newsfastweb.com