पार्टियां कर रही हैं वोटर्स की नब्ज टटोलने की मशक्कत, नहीं मिल रहा रुझान

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Parties are trying hard to feel the pulse of voters, but are not getting any trend.

मतदाता ओढ़े हुए है चतुराई भरी चुप्पी, रणनीतिकार हैं हैरान

चुनावी बयार की नहीं दिखी है अब तक कोई एक दिशा

बीकानेर। विधानसभा चुनाव में नेताओं के चुनाव अभियान का पारा चाहे गरम हो मगर मतदाता अपने दिलचस्प चुप्पी ओढे नजर आ रहे हैं। प्रदेश के तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा जिलों में चुनाव अखाड़े में मतदाताओं की चतुराई भरी यह चुप्पी राजनीतिक पार्टियों को न केवल परेशान कर रही बल्कि जनता का चुनावी नब्ज भांपने के लिए उन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ रही है।


राजनीतिक पंडितों के अनुसार कांग्रेस और भाजपा के चुनावी वॉर रूम में उनके रणनीतिकार अपने-अपने सर्वे और ग्राउंड फीडबैक का रोजाना आंकलन-विश्लेषण कर मतदाताओं के मिजाज के निकट तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, इस दिलचस्प चुनावी परिदृश्य में स्थानीय स्तर पर वर्तमान विधायकों को लेकर नाराजगी का भाव जरूर है, जो विशेष रूप से सत्ताधारी कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।


प्रदेश की सत्ता की दोनों प्रमुख दावेदारों कांग्रेस और भाजपा ने चुनाव अभियान के आखिरी हफ्ते में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और दोनों पार्टियों के शीर्षस्थ केंद्रीय नेतृत्व के धुआंधार प्रचार अभियान शुरू हो गए हैं। इतनी गहमागहमी के बावजूद बीकानेर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, झूंझुनंू, सीकर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, दौसा, टोंक और जयपुर ही नहीं, अलवर, सवाई माधोपुर, करौली जैसे जिलों मे चुनावी बयार की कोई एक दिशा नहीं दिखी।


राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह इस बात का संकेत है कि गहलोत सरकार के खिलाफ कोई लहर नहीं है जैसा भाजपा दावा कर रही है, लेकिन विधायकों के प्रति नाराजगी का एक फैक्टर है जो सकारात्मक बयार की राहों में अड़चन बना हुआ है। विधानसभावार स्थानीय मुद्दे भी हावी हैं। इसीलिए सर्वे टीमों से मिल रहे रोजाना के फीडबैक के हिसाब से हर क्षेत्र के लिए चुनावी रणनीति में निरंतर उचित बदलाव किए जा रहे हैं।
बेशक सत्ताधारी दल के विधायकों के प्रति नाराजगी का फायदा भाजपा को मिलेगा, मगर प्रदेश के हर क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण और मुद्दे अलग-अलग हैं और विशेषकर ग्रामीण राजस्थान के लोगों का मूड भांपना चुनौतीपूर्ण हो गया है।


विश्लेषकों के अनुसार कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा कार्यकताओं और उम्मीदवारों के समर्थक दबी जुबान में ही सही गहलोत के मुकाबले चेहरा नहीं होने को एक ऐसा फैक्टर मानते नजर आए जिसकी वजह से स्थानीय स्तर पर गहलोत पर हमला करना आसान नहीं हो रहा। हालांकिए इसकी भरपायी के लिए बूथ स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक भाजपा कार्यकर्ता गहलोत के मुकाबले पीएम मोदी के चेहरे की साख का सहारा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
वैसे कांग्रेस ने भी गहलोत को सीएम का आधिकारिक चेहरा घोषित नहीं किया है, मगर चुनाव में नेतृत्व उनका ही है और उनकी राजनीतिक जादूगरी से सभी परिचित हैं। इसीलिए इस मुद्दे पर कांग्रेस के नेता भाजपा पर निशाना साधने का मौका नहीं छोड़ रहे।

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