दोनों ही पार्टियों में है वंशवाद की परम्परा, पहले दादा-पिता और अब पौत्र-पौत्री लड़ रहे हैं चुनाव
कई परिवार ऐसे भी जिनकी दो से तीन पीढिय़ां लगातार लड़ रही हैं चुनाव
बीकानेर। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे पर वंशवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगा रही है। लेकिन प्रदेश की राजनीति की पड़ताल करने पर पता चलता है कि वंशवाद दोनों पार्टियों में हमेशा हावी रहा है। कई ऐसे परिवार हैं जिनकी दो से तीन पीढिय़ां लगातार चुनाव लड़ती रही हैं।
कई परिवारों के सदस्य जिन सीटों से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं, वहां किसी अन्य को चुनाव लडऩे का मौका ही नहीं मिला। प्रदेश की राजनीतिक में दो दर्जन से अधिक परिवार ऐसे हैं, जिनके चुनाव में सिर्फ चेहरे बदले हैं। जिस सीट पर कभी दादा और पिता चुनाव लड़ते थे उन पर अब पौत्र-पौत्री चुनाव लड़ रहे हैं।
यह है यहां की वंशवाद की कहानी
कांग्रेस के दिग्गज जाट नेता स्व. परसराम मदेरणा लगातार नौ बार विधायक रहे। मदेरणा के निधन के बाद उनके पुत्र महिपाल दो बार विधायक रहे। अब उनकी पुत्री दिव्या दूसरी बार ओंसिया सीट से चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस ने मदेरणा परिवार को 12 बार टिकट दिया है। इसी तरह नागौर की राजनीति में दबदबा रखने वाले मिर्धा परिवार का लंबा चुनावी नाता रहा है।
1952 में स्व. नाथूराम मिर्धा पहली बार विधायक बने थे। फिर नाथूराम के भतीजे रामनिवास मिर्धा राजनीति में सक्रिय हुए। इस बार मिर्धा परिवार के चार सदस्य चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें नाथूराम की पौत्री ज्योति मिर्धा भाजपा के टिकट पर नागौर सीट से चुनाव लड़ रही है। वहीं उनके सामने रामनिवास के पुत्र हरेंद्र मिर्धा चुनाव मैदान में है। खींवसर सीट से तेजपाल मिर्धा एवं डेगाना से विजयपाल मिर्धा चुनाव लड़ रहे हैं।
जयपुर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य दीया कुमारी भाजपा प्रत्याशी के रूप में विधाधर नगर सीट से चुनाव लड़ रही है। उनके पिता स्व. भवानीसिंह जयपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। वहीं उनकी दादी गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी से सांसद रही हैं। बीकानेर के पूर्व महाराजा करणी सिंह दो बार सांसद रहे तो अब उनकी पौत्री सिद्धीकुमारी चौथी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं।
दिग्गज नेता देवीसिंह भाटी सात बार विधायक रहे। फिर उनके पुत्र स्व. महेंद्रसिंह बीकानेर से सांसद रहे। अब देवीसिंह के पौत्र अंशुमान सिंह कोलायत सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व उप मुख्यमंत्री और टोंक के विधायक सचिन पायलट के पिता स्व. राजेश पायलट दौसा से सांसद रहे हैं।
यहां भी परिवारवाद हावी रहा
राजखेड़ा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रोहित बोहरा के पिता प्रधुम्न सिंह, लूणी से कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र बिश्नोई के पिता मलखान विश्नोई और दादा रामसिंह विश्नोई विधायक रहे हैं। दांतारामगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह के पिता नारायण सिंह सात बार विधायक रहे हैं। सरदारशहर से कांग्रेस प्रत्याशी अनिल शर्मा के पिता भंवरलाल शर्मा छह बार, वल्लभनगर से कांग्रेस प्रत्याशी प्रीति शक्तावत के ससुर गुलाबसिंह शक्तावत और पति गजेंद्र सिंह पूर्व में विधायक रह चुके हैं।
चूरू से कांग्रेस प्रत्याशी मकबुल मंडेलया के पिता रफीक मंडेलिया एक बार विधायक रहे हैं। मंडावा से कांग्रेस प्रत्याशी रीटा चौधरी के पिता रामनारायण चौधरी छह बार, आमेर से कांग्रेस प्रत्याशी प्रशांत शर्मा के पिता सहदेव शर्मा एक बार, नोखा से कांग्रेस प्रत्याशी सुशीला देवी के पति रामेश्वर डूडी दो बार विधायक व एक बार सांसद रहे हैं। झुंझुनूं से कांग्रेस से कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र ओला के पिता शीशराम आठ बार विधायक और पांच बार सांसद रहे हैं। राजसमंद से भाजपा प्रत्याशी दीप्ति माहेश्वरी की मां किरण माहेश्वरी दो बार विधायक रही हैं। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेवसिंह दो बार विधायक रहे हैं।
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