इन 82 सीटों पर जाट बनाएंगे-बिगाड़ेंगे बीजेपी-कांग्रेस का सियासी गणित

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In these 82 seats, Jats will make or spoil the political arithmetic of BJP-Congress

किसी भी पार्टी की जीत-हार तय करते हैं जाट व किसानों के वोट

वर्ष, 2013 के विधानसभा चुनाव में जाट समाज ने किया था भाजपा का समर्थन

बीकानेर। विधानसभा चुनाव में हर बार सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि आखिर जाट किसका साथ देंगे और किसकी खाट खड़ी करेंगे। जाट समाज किसान कौम से आती है, जिसका प्रदेश में खास प्रभाव है। प्रदेश की 82 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां जाट और किसान बहुसंख्यक है, लिहाजा ऐसे में किसी भी पार्टी की जीत या हार में इस समाज का खासा योगदान रहता है।


राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार वर्ष, 2013 के विधानसभा चुनाव में जाटों ने भाजपा का समर्थन किया था तो वहीं वर्ष,2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को किसान कौम की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ा और कांग्रेस की जीत हुई। अब एक बार फिर सवाल यही है कि आखिर जाट किसका साथ देंगेï? दरअसल, प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल जाटों को साधने में जुटे हुए हैं।

इन सीटों पर रहता है असर


शेखावाटी क्षेत्र
चूरू की सादुलपुर, तारानगर, चूरू, सरदारशहर, रतनगढ़ और सुजानगढ़।
सीकर की फतेहपुर लक्ष्मणगढ़, धोद, दातांरामगढ़, खंडेला, नीम का थाना और श्रीमाधोपुर।
झुंझुनू के पिलानी, उदयपुरवाटी, नवलगढ़, मंडावा, झुंझुनू, खेतड़ी और सूरजगढ़ में प्रभाव देखने को मिलेगा।
मारवाड़ क्षेत्र
जोधपुर की लोहावट, शेरगढ़, ओसियां, भोपालगढ़, सरदारपुरा, जोधपुर, सूरसागर, लूणी, बिलाड़ा।
पाली की जैतारण, सोजत, बाली, पाली, मारवाड़ जंक्शन, सुमेरपुर।
जालौर की आहोर, जालौर, भीनमाल, रानीवाड़ा, सांचौर।
नागौर की लाडनूं, डीडवाना, जायल, नागौर, खींवसर, मेड़ता, डेगाना, मकराना, परबतसर।
बाड़मेर की शिव, बाड़मेर, बायतु, पचपदरा, सिवान, गुड़ामालानी, चौहटन।
जैसलमेर की पोकरण, जैसलमेर।
सिरोही की पिंडवाड़ा, आबू, रेवदरए, और सिरोही।
बीकानेर की खाजूवाला, बीकानेर पश्चिम, बीकानेर पूर्व, कोलायत, लूनकरणसर, श्रीडूंगरगढ़, नोखा।
श्रीगंगानगर की सादुलशहर, गंगानगर, करणपुर, सूरतगढ़, रायसिंहनगर, अनूपगढ़।
हनुमानगढ़ की संगरिया, हनुमानगढ़, पीलीबंगा, नोहर, भादरा।
भरतपुर की कामां, नगर, वैर डीग-कुम्हेर, नदबई, बयाना, भरतपुर।
धौलपुर की बसेड़ी, बाड़ी, राजाखेड़ा व धौलपुर।


भाजपा का प्लान
वर्ष, 2018 में भाजपा को जाटों की नाराजगी ही भारी पड़ी थी, लिहाजा ऐसे में भाजपा अब किसी भी सूरत में जाट समुदाय से नाराज की मोल नहीं ले सकती है। सतीश पूनिया को जब प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया तो उन्हें उप नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई। पूनिया लगातार जाट समाज को साधने में जुटे हुए हैं और यही एक बड़ा कारण है कि उन्हें पार्टी अलग-अलग मौकों पर आगे करती रही है।
कांग्रेस का प्लान
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा जाट समाज से आते हैं। साथ ही कांग्रेस ने अपने कार्यकाल के दौरान जाट समाज को साधने के लिए कई कार्य किया। कांग्रेस ने वक्त-वक्त पर कई जाट नेताओं को अहम और बड़ी जिम्मेदारियां भी दी गई।

#KAMAL KANT SHARMA / BHAWANI JOSHI www.newsfastweb.com

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