देश में इसे लेकर सुगबुगाहट का दौर हुआ शुरू
विपक्षी दलों में मची खलबली, विशेष सत्र 18 से 22 सितम्बर तक
बीकानेर। केंद्र सरकार की ओर से संसद का 18 से 22 सितम्बर तक विशेष सत्र बुलाए जाने के बाद देशभर में सुगबुगाहट का दौर शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि इस विशेष सत्र के दौरान केन्द्र सरकार एक देश-एक चुनाव बिल ला सकती है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपने-अपने कयास लगाने में जुटे हैं।
इस बात को लेकर चर्चा का दौर तब और गरम हो गया जब केंद्र सरकार ने एक देश-एक चुनाव को लेकर एक कमेटी बना दी और उसका प्रमुख पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नियुक्त कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार एक देश-एक चुनाव की चर्चा क्यों है और इससे चुनाव में होने वाले खर्च पर कितनी कटौती होगी, इस बारे में आमजन को जानकारी होनी बहुत जरूरी है। क्योंकि, विपक्षी राजनीतिक दल इस बिल का पूरी तरह से विरोध करेंगे, ये बिल्कुल साफ नजर आ रहा है। लेकिन एक देश-एक चुनाव व्यवस्था हो जाने से बहुत ज्यादा रुपए की बचत देश को होगी।
विशेषज्ञों के मुताबिक यह बात सही है कि अगर एक देश-एक चुनाव की प्रक्रिया होती है तो देश का काफी पैसा बचेगा लेकिन यह भी बात मानी जा रही है कि इससे संवैधानिक समन्वय की दिक्कतें पैदा होने की आशंका है। बताया जाता है कि अगर एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से विकास कार्यों पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन सबके बीच वर्ष, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त, 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट आई थी।
2019 में 55000 करोड़ का खर्च
इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं तो एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाएगा। वहीं एक मीडिया रिपोर्ट में सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के हवाले से बताया गया कि 2019 के चुनावों में 55000 करोड़ रुपए का खर्च आया था जो 2016 में अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनावों से भी ज्यादा है। इस चुनाव में हर वोटर पर आठ डॉलर का खर्च आया था जबकि देश में आधी से ज्यादा आबादी रोजाना तीन डॉलर से भी कम पर गुजारा करने को मजबूर है।
इसके अलावा एक बात यह भी इस रिपोर्ट में कही गई कि वर्ष,1998 से 2019 के बीच चुनावी खर्च में छह गुना बढ़ोतरी हुई है। साल, 2022 में चुनाव आयोग ने पांच राज्यों पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनावों में हुए खर्च के आंकड़े जारी किए, जिनमें बीजेपी ने 340 करोड़ रुपए और कांग्रेस ने 190 करोड़ रुपए खर्च किए थे। इसका मतलब यह हुआ कि यही चुनाव जब एक साथ यानी कि लोकसभा के साथ होंगे तो काफी खर्च बचेगा। और ये वे आंकड़ें हैं जो पार्टियों ने चुनाव आयोग के दिए हैं। असली खर्चे इससे ज्यादा हो सकते हैं।
केंद्र सरकार ने तैयारी तेज कर दी
कुल मिलाकर अब देश एक देश एक चुनाव को लेकर अब केंद्र सरकार ने तैयारी तेज कर दी है और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस कमेटी का प्रमुख नियुक्त किया गया है। अब देखना यह होगा कि विपक्षी पार्टियां संसद में इसको लेकर क्या रुख अपनाती हैं और इसमें कानून का पेंच कैसे फंसता है।
#KAMAL KANT SHARMA / BHAWANI JOSHI www.newsfastweb.com