छात्रसंघ चुनाव पर क्यों लगी रोक? आखिर क्या डर है कांग्रेस को

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Why was the ban on student union elections? What is the Congress afraid of?

पिछले चुनाव में अच्छा नहीं रहा था एनएसयूआई का प्रदर्शन

इस बार कोई भी रिस्क लेना नहीं चाहती है कांग्रेस

बीकानेर। चुनावी साल में राज्य की कांग्रेस सरकार ने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में होने वाले छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगा दी है। इस रोक की वजह कांग्रेस सरकार ने कुछ और बताई है लेकिन हकीकत में छात्रसंघ पर रोक लगाने के कारण बहुत अलग हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने सहित अन्य प्रशासनिक कार्यों में छात्रसंघ चुनाव के कारण परेशानियां उत्पन्न होने की संभावना है। साथ ही लिंगदोह कमेटी की शर्तों की पालना नहीं होना भी एक कारण बताया गया है। अगर लिंगदोह कमेटी की शर्तों के उलंघन के आधार पर चुनाव रद्द किए गए हैं तो आगामी वर्षों में भी शर्तों की पालना होने की कोई गारंटी नहीं है। गतवर्षों में भी लिंगदोह कमेटी की शर्तों की धज्जियां उड़ी थी। दरअसल, छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाने की असली वजह कुछ और है। वजह जानने के लिए गतवर्षों के छात्रसंघ चुनाव परिणामों पर एक नजर डाली जाए तो बहुत कुछ कारण आसानी से सामने आ जाते हैं और कांग्रेस का भय भी दिखने लगता है।

पिछले छात्रसंघ चुनाव में हुआ था एनएसयूआई का सफाया

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार पिछले साल हुए छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई का सफाया हो गया था। कुल 17 विश्वविद्यालयों में से 6 में बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी के प्रत्याशी जीते थे। 9 विश्वविद्यालयों में निर्दलीय प्रत्याशी अध्यक्ष बने थे जबकि एनएसयूआई के प्रत्यशी सिर्फ 2 विश्वविद्यालयों में ही अध्यक्ष बने थे। अगर इस बार भी एनएसयूआई का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो सरकार के खिलाफ माहौल बनता। सरकार के खिलाफ बनने वाले माहौल के चलते भी छात्रसंघ चुनावों को रद्द किया जाना माना जा रहा है।

राजस्थान विश्वविद्यालय के चुनाव परिणाम भी बड़ी वजह


पिछले तीन विधानसभा चुनाव के सालों में राजस्थान विश्वविद्यालय में हुए छात्रसंघ चुनाव पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि उन वर्षों में एबीवीपी का पलड़ा भारी रहा। वर्ष, 2018 में राजस्थान विश्वविद्यालय में निर्दलीय विनोद जाखड़ अध्यक्ष बने थे। उससे पहले वर्ष 2013 में एबीवीपी के कानाराम जाट अध्यक्ष बने थे और उससे पहले वर्ष 2003 में भी एबीवीपी के जितेन्द्र मीणा राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने थे। वर्ष, 2008 के विधानसभा चुनाव के दिनों में छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए थे।

अजीब संयोग रहा है छात्रसंघ चुनावों का विधानसभा चुनावों से


राजनीतिक विशेषज्ञों ने बताया कि विधानसभा चुनावों के वर्षों में हुए छात्रसंघ चुनाव और प्रदेश में सरकार बनने का संयोग भी बड़ा अजीब रहा। जब-जब राजस्थान विश्वविद्यालय में एबीवीपी या निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत हुई। तब-तब कांग्रस को बहुमत नहीं मिला। वर्ष, 2003 के छात्रसंघ चुनावों में राजस्थान विश्वविद्यालय में एबीवीपी के जितेन्द्र मीणा अध्यक्ष बने। तब कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी को 120 सीटों पर जीत मिली थी। 2008 के छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी के कानाराम जाट राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। तब भी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी को रिकॉर्ड 153 सीटें मिली थी। वर्ष, 2018 के छात्रसंघ चुनाव में जब निर्दलीय विनोद जाखड़ अध्यक्ष बने। तब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला। 99 सीटें जीतने के बाद निर्दलीयों का सहारा लेकर कांग्रेस की सरकार बनी थी। इस बार छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाने जाने के पीछे ऐसे कई कारण माने जा रहे हैं।

#KAMAL KANT SHARMA / BHAWANI JOSHI www.newsfastweb.com

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