रेस्टोरेंट से मंगाए भोजन की तुलना में महंगे होते हैं ऑनलाइन फूड
वसूला जा रहा है डिलिवरी चार्ज भी
#KAMAL KANT SHARMA / BHAWANI JOSHI www.newsfastweb.com
बीकानेेर। अगर आप रेस्टोरेंट से फूड ऑर्डर करने के बजाय सीधे किसी ऐप के जरिए फूड ऑर्डर करते हैं तो आपका बिल 30 से 35 प्रतिशत तक ज्यादा हो सकता है। यानी मान लीजिए अगर आप किसी रेस्टोरेंट से 1 हजार रुपए का खाना ऑर्डर करते हैं लेकिन इसके लिए किसी ऐप का इस्तेमाल करते हैं तो आपको एक हजार नहीं बल्कि 1300 से 1350 रुपये चुकाने होंगे। ऑनलाइन फूड एक स्मार्ट बिजनेस बन गया है। आधुनिकता के इस दौर में लोग दिखावे की होड़ करते हुए अपनी जेबें कटवा रहे हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में एक कंपनी के ऐप पर 40 करोड़ ऑनलाइन फूड ऑर्डर रजिस्टर हुए थे। 2021 में ये आंकड़ा 23 करोड़ था। अनुमान है कि इस साल कम्पनी को भारत में 44 करोड़ ऑनलाइन फूड ऑर्डर मिलेंगे और 2026 तक इनकी संख्या 164 करोड़ पहुंच जाएगी। यानी 2026 तक देश में भारत की आबादी से ज्यादा ऑनलाइन फूड ऑर्डर प्लेस होंगे। ये आंकड़ा सिर्र्फ एक कंपनी का है। बाकी कम्पनियों को भी फूड ऑर्डर्स यहां मिल रहे है। कहने का मतलब ये है कि आज देश में ऑनलाइन फूड ऑर्डर करने का एक फैशन बन गया है। घर बैठे ऑनलाइन फूड मंगवाने के दिखावे में लोग अपनी जेबें खुशी-खुशी कटवा रहे हैं। वर्तमान में बड़े बुज़ुर्गों की कही बात ‘पैसा सोच समझ कर खर्च करना चाहिए’ को लोगों ने भुला दिया है। ऑनलाइन फूड ऑर्डर करते समय लोग ऐसा नहीं करते हैं।
ऑनलाइन फूड ऑर्डर के मामले में यहां एक ताजा प्रकरण सामने आया है। जो मनोज शर्मा नाम के एक व्यक्ति ने संवाददाता से साझा किया। इस शख्स का कहना है कि उसने एक ही रेस्टोरेंट से ऑनलाइन और ऑफलाइन फूड ऑर्डर किया। जो ऑर्डर ऑफलाइन किया गया था, यानी सीधे रेस्टोरेंट को फोन करके मंगाया गया था, उसकी कीमत 512 रुपये थी लेकिन जो फूड ऑर्डर ऑनलाइन किया था, उसकी कीमत 690 रुपए थी। ये बिल इतना तब था जब एप पर उसे इस ऑर्डर पर 75 रुपये का डिस्काउंट मिला था।
35 प्रतिशत महंगा मिलता है ऑनलाइन फूड
यानी सीधे तौर पर ऑफलाइन की तुलना में ऑनलाइन फूड ऑर्डर लगभग 35 प्रतिशत महंगा था। अब ये सिर्फ एक मामला है। जरा सोचिए, दिनभर में देश में कितने ऑनलाइन फूड ऑर्डर प्लेस होते होंगे और इस तरह लोगों को कितना ज्यादा पैसा देना पड़ता होगा। इस बारे में कुछ जानकार लोगों से बात की गई तो उनका कहना था कि इन ऐप्स पर दिखाई जाने वाली कीमतों और वास्तविक कीमत में भारी अंतर होता है। अक्सर लोग इस अंतर को ये सोच कर नजरअन्दाज कर देते हैं कि 20-25 रुपए ज्यादा देने से क्या हो जाएगा, लेकिन ये खेल बहुत बड़ा है।
सरल शब्दों में इसे समझा जाए तो किसीक्षेत्र में ए, बी, सी और डी नाम के चार रेस्टोरेंट हैं। जहां एक प्लेट दाल 100 रुपए की है। अब ऑनलाइन फूड ऑर्डर की सप्लाई करने वाली कम्पनियां इन रेस्टोरेंट के साथ टाइ-अप कर लेती हैं। ये डील कुछ इस तरह से होती है कि इन रेस्टोरेंट को हर ऑनलाइन फूड ऑर्डर पर ऑनलाइन फूड ऑर्डर सप्लाई करने वाली कंपनी को 20 से 28 प्रतिशत तक कमीशन देना होता है। यानी मान लीजिए कोई डिश 100 रुपए की है तो उसमें से 20 से 28 रुपए कमीशन के रूप में रेस्टोरेंट मालिक इन कम्पनियों को देते हैं क्योंकि इन्हें ऑनलाइन फूड ऑर्डर इन्हीं कम्पनियों के जरिए मिलते हैं। अब इससे होता ये है कि जब इन रेस्टोरेंट के द्वारा इन कम्पनियों को कमीशन दी जाती है तो इससे उन्हें नुकसान होता है। इसी नुकसान से बचने के लिए ये तमाम रेस्टोरेंट उस डिश की कीमत बढ़ा देते हैं। जैसे 100 रुपए की कोई डिश है और कमीशन देने से कोई नुकसान ना हो, इसके लिए उस डिश की कीमत 100 रुपए से 120 या 125 रुपए तक कर दी जाती है।
डिलीवरी चार्ज भी वसूल रही हैं कंपनियां
जानकारों ने बताया कि ऑनलाइन फूड ऑर्डर सप्लाई करने वाल कई कंपनियां ग्राहकों से डिलीवरी शुल्क भी वसूल रही हैं। कुछ समय पहले तक तो ऐसा नहीं किया जा रहा था लेकिन धीरे धीरे जैसे लोगों को उनके ऐप्स की आदत होने लगी, इन कम्पनियों ने डिलिवरी चार्ज के बोझ को ग्राहकों पर पहले से बढ़ा दिया। ये एक तरह की व्यवसायिक रणनीति होती है, जिसमें बाजार पर नियंत्रण के लिए ये कम्पनियां पहले भारी डिस्काउंट देती हैं और तरह-तरह के फायदे ग्राहकों को दिखाती हैं। जब लोग इन कम्पनियों की सेवाओं पर निर्भर हो जाते हैं तो ये उन डिस्काउंट को खत्म कर देती हैं या सीमित कर देती हैं।