शहर के विकास में रोड़ा बन रहे हैं अपने ही लोग

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Your own people are becoming an obstacle in the development of the city

एक बड़ा गांव बनकर रह गया है बीकानेर

वोट बैंक और स्वार्थ हित की राजनीति है हावी

#KAMAL KANT SHARMA / BHAWANI JOSHI www.newsfastweb.com

बीकानेर। शांत और सरल स्वभाव के लोगों वाले बीकानेर के विकास में शहर के ही कुछ लोग रोड़ा बनते नजर आ रहे हैं। मुद्दा चाहे एलीवेटेड रोड का हो या बदहाल यातायात व्यवस्था को सुचारू करने का, या फिर अन्य कोई अव्यवस्था को सुव्यवस्थित करने का, हर किसी विकास कार्य में बाधा पहुंचाने वाले लोग अपने ही होते हैं। यही वजह रही है कि बी-2 श्रेणी का बीकानेर आज एक बड़ा गांव बनकर रह गया है।


गौरतलब है कि शहर मेें रेल फाटकों की समस्या पिछले चार-पांच दशकों से शहरवासियों की परेशानी बनी हुई है। कुछ वर्ष पहले भाजपा सरकार के शासन में इस खास समस्या का समाधान एलीवेटेड रोड के रूप में निकाला था। एलीवेटेड रोड बनने का सुनते ही महात्मा गांधी रोड के कुछ प्रतिष्ठित व राजनीतिक पैठ रखने वाले व्यापारियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में विरोध बढ़ गया और मामला हाई कोर्ट तक पहुंच गया। रेल फाटकों की समस्या का समाधान नहीं होने में राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने चहेते शहरवासियों, व्यापारियों का भरपूर उपयोग किया। जिसकी वजह से बीकानेर के आमजन की इस खास समस्या का समाधान आज तक नहीं हो पाया और निकट भविष्य में समाधान होता भी नजर नहीं आ रहा है।


इसी प्रकार कुछ दिनों पहले संभागीय आयुक्त पद नए आए प्रशासनिक अधिकारी ने शहर के लिए नासूर बन चुकी बदहाल यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए महात्मा गांधी रोड से कोटगेट जाने के लिए एक तरफा यातायात व्यवस्था की तो फिर से वहीं के राजनैतिक संरक्षण प्राप्त व्यापारियों ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं बाजारों में यातायात व्यवस्था सुचारु रहे इसके लिए संभागीय आयुक्त नीरज के पवन और कलेक्टर भगवतीप्रसाद कलाल ने जब महात्मा गांधी रोड, सट्टा बाजार, कोटगेट के पास दुकानदारों के वाहन खड़े नहीं करने के आदेश जारी किए तो लोगों ने उसका विरोध भी कर दिया।


सूत्रों से पता लगा है कि राजनीतिक संरक्षण प्राप्त व्यापारियों ने अपने पसंदीदा नेता के परिजनों से प्रशासनिक अधिकारियों को फोन करवा कर इस व्यवस्था को पहले जैसा करने का दबाव भी बनाने की कोशिश की। लेकिन इस एक तरफा यातायात व्यवस्था और पार्किंग स्थल पर ही वाहन खड़ा करने की व्यवस्था को आमजन से इतना समर्थन मिला कि राजनेता भी अपनी छवि बचाने तथा आने वाले चुनाव में लोगों के कोप का भाजन नहीं बनने की भय से प्रशासन पर ज्यादा दबाव नहीं डाल सके।

बीकानेर को पीछे धकेलने का ताजा उदाहरण शहर में हुए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान भी देखा जा रहा है। प्रशासन जिस क्षेत्र में भी अतिक्रमण हटाने के लिए जाता है, उस क्षेत्र में राजनीति से प्रेरित लोग प्रशासनिक कार्रवाई का विरोध कर देते हैं। लोगों के इस विरोध को हवा देने के लिए राजनीति से जुड़े नेता उनकी अगुवाई करने पहुंच जाते हैं। ऐसे में प्रशासन भी पीछे हट जाता है और अव्यवस्था वहीं की वहीं रह जाती है।


गौरतलब यह भी है कि ऐसे बहुत कम अवसर आते हैं जब प्रशासन स्वयं संज्ञान लेकर किसी शहर में अव्यवस्थाओं को सुचारू करने की कोशिश करता है। जब उस शहर के लोग ही प्रशासनिक कार्रवाई का विरोध करने लगते हैं तो प्रशासन उस शहर में व्याप्त अव्यवस्थाओं को जैसे का तैसा छोड़ देता है। साथ ही अपने स्थानान्तरण के बाद आने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को उस शहर के लोगों का फीडबैक दे जाता है। यही वजह रही है कि आज भी बीकानेर शहर प्रदेश के अन्य शहरों की अपेक्षा विकास में पिछड़ा ही रहा है और एक बड़ा गांव बन कर रह गया है।

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